Friday, November 22, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. लाइफस्टाइल
  3. जीवन मंत्र
  4. Shani Pradosh Vrat 2021: आज शनि प्रदोष व्रत, इस मुहूर्त में करें भगवान शिव और शनिदेव की पूजा, जानें व्रत कथा

Shani Pradosh Vrat 2021: आज शनि प्रदोष व्रत, इस मुहूर्त में करें भगवान शिव और शनिदेव की पूजा, जानें व्रत कथा

प्रत्येक प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है, लेकिन शनि प्रदोष होने से आज के दिन शनिदेव की विशेष रूप से उपासना की जायेगी |

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: May 08, 2021 6:22 IST
Shani Pradosh Vrat 2021: 8 मई को शनि प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा- India TV Hindi
Image Source : INSTA/MAHADEV_KE_PREMI/MA Shani Pradosh Vrat 2021: 8 मई को शनि प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

वैशाख कृष्ण पक्ष की उदया तिथि त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाता है। प्रत्येक महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत करने का विधान है, साथ ही वार के हिसाब से यह जिस दिन पड़ता है, उसी के अनुसार इसका नामकरण होता है | इस बार शनिवार के दिन प्रदोष व्रत है, इसलिए आज शनि प्रदोष व्रत किया जायेगा। प्रत्येक प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है, लेकिन शनि प्रदोष होने से आज के दिन शनिदेव की विशेष रूप से उपासना की जायेगी | 

प्रदोष काल उस समय को कहा जाता है, जब दिन छिपने लगता है, यानी सूर्यास्त के ठीक बाद वाले समय और रात्रि के प्रथम प्रहर को प्रदोष काल कहा जाता है। जानिए  शनि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा। 

चाणक्य नीति: मनुष्य का सबसे बड़ा भय है ये चीज, लग जाए तो पूरा जीवन हो जाता है बर्बा

शनि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त

त्रयोदशी तिथि आरंभ: 8 मई 2021 को शाम 5 बजकर 20 मिनट से  शुरू

त्रयोदशी तिथि समाप्त:  9 मई 2021 शाम 7 बजकर 30 मिनट तक
पूजा समय- 08 मई शाम 07 बजकर रात 09 बजकर 07 मिनट तक

Lunar Eclipse 2021: मई माह के अंत में लग रहा है साल का पहला चंद्र ग्रहण, जानें समय, सूतक काल और इससे जुड़ी अहम बातें

शनि प्रदोष व्रत पूजा विधि

प्रदोष व्रत सूर्योदय से लेकर रात के प्रथम पहर तक किया जाता है। इस दौरान अन्न नहीं खाया जाता। सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत होकर सबसे पहले शिव जी की पूजा के लिये किसी शिव मंदिर में जायें। वहां जाकर सबसे पहले भगवान शिव के साथ माता पार्वती और नंदी को प्रणाम करें। फिर पंचामृत व गंगाजल से शिव जी को स्नान कराकर साफ जल से स्नान करायें। बेल पत्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची आदि से भगवान का पूजन करें और हर बार एक चीज़ चढ़ाते हुए ‘ऊं नमः शिवाय’ का जाप करें । इस दिन भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं और शिवजी के आगे घी का दीपक जलाएं।

जो संतान पाना चाहते हैं उन दम्पति को तो प्रदोष व्रत जरूर करना चाहिए और दोनों को साथ में पूरे विधि-विधान से शिव जी की पूजा करनी चाहिए। भगवान की कृपा से आपके घर में जल्द ही किलकारियां गूंजेगी। इस तरह शिव पूजन के बाद शनिदेव की भी पूजा करें और पीपल के पेड़ में जल जरूर चढ़ाएं, साथ ही एक तेल का दिया भी जलाएं और शनि के 108 नामों का जाप करें। शनि के दर्शन के समय एक बात का ध्यान रखें कि शनिदेव के दर्शन कभी भी सामने से न करें, हमेशा पीछे से ही करें।

शनि प्रदोष व्रत कथा

स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।

एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।

Latest Lifestyle News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Religion News in Hindi के लिए क्लिक करें लाइफस्टाइल सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement