शनि की पीड़ा से बचने के लिए
शनि की पीड़ा से उत्पन्न रोगों से बचाव के लिये एक और उपाय भी है। बिच्छू बूटी की जड़, जो किसी भी पंसारी के यहां आपको आसानी से मिल जायेगी, उसे लेकर इस दिन लोहे के ताबीज में भरकर सरसों के तेल से भरे हुए मिट्टी के सकोरे में डाल दें। उस सकोरे में रूई की बत्ती लगा दीजिये और उसे जला दीजिये। ये दीपक शाम के समय जलाइये और उसे देर रात तक जलाकर रखिये। अगली भोर होने से पहले उस तेल से ताबीज को निकालकर, साफ करके काले धागे में पिरोकर गले में पहन लें और दीपक को जलता हुआ छोड़ दीजिये, उसे अपने आप बुझने दीजिये। फिर अगले दिन उस दीपक को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दीजिये। ये सब करने के बाद एक मजदूर को खाना भी जरूर खिलाइए। आपको शनि की पीड़ा से जल्द ही मुक्ति मिलेगी।
पथरी रोग से निजता के लिए
शनि की पीड़ा से उत्पन्न रोगों में से एक पथरी भी है। अगर आप भी पथरी के दर्द से परेशान हैं तो आज के दिन 6 मुट्ठी सरसों के दाने लेकर उसके ऊपर एक मिट्टी की दियाली रखें और उसमें सरसों का तेल भरिये। अब उस दियाली में काले घोड़े की नाल लाकर डुबो दें और जब भी पुष्य नक्षत्र आये तो इस नाल का छल्ला बनाकर आपको पहनना है। यहां फिर से एक बार
शनि द्रष्टि से बचने के लिए
शनि की दृष्टि से बचने के लिये आज के दिन सरसों या तिल के तेल का दीपक लेकर, उसमें दो लोहे की कीलेंडालकर पीपल के पास रख आयें। अपने घर की खुशहाली के लिये आज के दिन अपने वजन के बराबर सरसों की खली गौशाला में दें।
भगवती काली को इस दिन काली कनेर का पुष्प चढ़ाने से भी शनि ग्रह की शान्ति होती है।
सुख-समृद्धि के लिए
घर में सुख-समृद्धि बनाए रखने के लिये आज शनि अमावस्या की रात को आठ बादाम और आठ काजल की डिब्बी लेकर काले कपड़े में बांधकर संदूक में रख लें।