धर्म डेस्क: आज श्रावण कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि है। साथ ही आज सोमवार का दिन है। यह श्रावण मास का दूसरा सोमवार है। इस बार श्रावण मास में चार सोमवार पड़ रहे हैं। श्रावण का पहला सोमवार 30 जुलाई को था, आज दूसरा सोमवार है और तीसरा और चौथा सोमवार क्रमशः 13 और 20 अगस्त को पड़ रहा है। श्रावण मास भगवान शिव की पूजा के लिये बड़ा ही प्रशस्त है, इसमें भी सोमवार का दिन भगवान शिव की कृपा पाने के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है। अतः श्रावण के सभी सोमवार पर हम आपको भगवान शंकर की विशेष पूजा- अर्चना करनी चाहिए।
आचार्य इंदु प्रकाश आज भगवान शिव की एक विशेष पद्धति से पूजा के बारे में चर्चा करेंगे। भगवान शिव की अनेक पूजा विधियों में से एक पार्थिव पूजा का बड़ा ही महत्व है। ये पूजा पद्धति किसी एक राशि के लिये नहीं है बल्कि सभी राशि के जातक इस पूजा पद्धति को अपनाकर आज श्रावण मास के दूसरे सोमवार के दिन भगवान शिव को खुश कर सकते हैं और उनकी कृपा से मनचाहे फलों की प्राप्ति कर सकते हैं। (Sawan Month 2018: जानिए बेलपत्र तोड़ने और शिवलिंग में चढ़ाने का सही तरीका )
श्रावण मास के सोमवार के दिन पार्थिव पूजन करना आपके लिये बड़ा ही फलदायी साबित होगा। पार्थिव पूजन से यहां मतलब- मिट्टी का शिवलिंग बनाकर, उसकी विधि-पूर्वक पूजा करके और पूजा के बाद उसे विसर्जित कर देने से है। माहेश्वर तन्त्र के अनुसार पार्थिव पूजन वास्तव में एक प्रकार की ध्यान विधि है, जहां सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और संहार, एक ही अनुष्ठान का हिस्सा होते हैं।
मिट्टी से हम शिवलिंग बनाते हैं, पूर्ण मनोयोग से उसे शिव मानकर उसकी उपासना करते हैं, और पूजा के बाद अपने ही हाथों से उसे विसर्जित कर देते हैं।..... अपने ही निर्माण का ध्वंस या विसर्जन और वो भी ऐसा निर्माण, जिसे आपने अपना ईश्वर माना हो, ये काम हमें वह मानसिक स्थिति देता है, जिससे हम दृढ़ता के साथ जीवन में आने वाली हर परिस्थति का सामना करते हैं या करने में सक्षम होते हैं, तो आइए आज हम आपको भारतीय धर्म शास्त्र की उसी विधा से परिचित कराते हैं।
ऐसे करें भगवान शिव की पार्थिव पूजा
पार्थिव पूजा के लिये सबसे पहले कहीं साफ स्थान से मिट्टी लाकर, उसे छानकर, साफ करके किसी पात्र में रखकर, उसको पानी से सान लेना चाहिए। कुछ लोग मिट्टी सानते समय, उसमें घी भी मिला लेते हैं, आप भी ऐसा कर सकते हैं। अब इस मिट्टी का पिंड बनाकर, उसके ऊपर 16 बार ‘बम्’ शब्द का उच्चारण करना चाहिए। शास्त्रों में ‘बम्’ को सुधाबीज, यानी अमृत बीज कहा जाता है।‘बम्’ के उच्चारण से यह मिट्टी अमृतमय हो जाती है। फिर उसमें से थोड़ी मिट्टी लेकर छोटे-से गणेश जी बनाने चाहिए और गणेश जी बनाते समय मंत्र पढ़ना चाहिए-
'ऊं ह्रीं गं ग्लौं गणपतये ग्लौं गं ह्रीं'
फिर यही मंत्र पढ़कर गणेशवर को पूजा की पीठ पर बैठा देना चाहिए। (Sawan Month 2018: जानिए बेलपत्र तोड़ने और शिवलिंग में चढ़ाने का सही तरीका )
इतना बड़ा होना चाहिए शिवलिंग
ये शिवलिंग उसी मिट्टी से बनेगा जो आपने सानकर रखी है। सबसे पहले शिवलिंग का साइज समझ लीजिये- शिवलिंग को आपके अंगूठे से बड़ा होना चाहिए और आपके वितस्ति, यानी बित्ते से छोटा होना चाहिए। अब शिवलिंग बनाने के लिये मिट्टी उठाइए और मिट्टी उठाते समय मंत्र पढ़िए-'ऊं नमो हराय '।
यह मंत्र पढ़ते समय बहेड़े के फल के बराबर मिट्टी उठानी चाहिए और उसका शिवलिंग बनाना चाहिए। शिवलिंग बनाते समय जो मंत्र पढ़ा जाना चाहिए, वो इस प्रकार है- 'ऊं नमो महेशवराय'
शिवलिंग बन जाने के बाद उसे पूजा की पीठ पर रखना चाहिए और शिवलिंग को पूजा पीठ पर रखते हुए ये मंत्र पढ़ना चाहिए- 'ऊं नमः शूलपाणि'
इस मंत्र जाप के बाद शेष बची हुयी मिट्टी से कुमार कार्तिकेय की मूर्ति बनानी चाहिए और कुमार कार्तिकेय की मूर्ति बनाते समय मंत्र पढ़ना चाहिए- 'ऊं ऐं हुं क्षुं क्लीं कुमाराय नमः'
इस प्रकार श्रीगणेश की मूर्ति, शिवलिंग और कुमार कार्तिकेय की मूर्ति बनाकर, उसमें भगवान का आह्वान करना चाहिए। आह्वान के लिये कहना चाहिए- 'ऊं नमः पिनाकिने इहागच्छ इहातिष्ठ'
इस प्रकार भगवान को बुलाकर मन से उपचार करते हुए पैर आदि का पूजन करना चाहिए। फिर भगवान को स्नान कराना चाहिए और स्नान कराते समय कहना चाहिए- 'ऊं नमः पशुपतये'। (सावन में शिवलिंग कभी भी न चढ़ाएं ये 5 चीजे, होगा आपका अनिष्ट )
ऐसे करें शिवलिंग की पूजा
इस मंत्र से स्नान कराके, फिर शतरुद्रीय मंत्रों से स्नान कराना चाहिए। इसके बाद आप 'ऊं नमः शिवाय', मंत्र से गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। सामान्य व्यक्ति के लिये इतना पूजन पर्याप्त है, इसके बाद आपने जितनी संख्या में सोचा हो, उतनी संख्या में 'ऊं नमः शिवाय' मंत्र का जप करें। आप कितना जप करेंगे, ये बात पूजा शुरू करने के पहले ही सोच लेनी चाहिए। यह विचार ही संकल्प कहलाता है। अपनी संकल्पित पूजा समाप्त करने के बाद हाथ में फूल लेकर भगवान को पुष्पांजलि चढ़ानी चाहिए। पुष्पांजलि के बाद भगवान से उनके स्थान पर जाने का निवेदन करना चाहिए। इस प्रकार पूजा के बाद सभी मूर्तियों को आदरपूर्वक जल में विसर्जित कर देना चाहिए।
एक सामान्य गृहस्थ की पूजा, लेकिन कुछ सुधिजन या अपनी विशेष इच्छा की पूर्ति चाहने वाले इससे एक कदम आगे बढ़ना चाहते हैं, तो आइए चलते हैं एक कदम आगे और चर्चा करते हैं साधना के अगले सोपान की धूप दीप, नैवेद्य दिये जाने के बाद की पूजा आवरण पूजा कहलाती है। आवरण पूजा में विग्रह की पूर्व दिशा में पूजा करके मंत्र पढ़ना चाहिए- 'पूर्वे ऊं शर्वाय क्षितिमूर्तये नमः'
फिर ईशान दिशा में पूजा करनी चाहिए और कहना चाहिए- 'ऐशानये ऊं भवाय जलमूर्तये नमः'
इसी प्रकार उत्तर दिशा में पूजा करनी चाहिए- 'ऊं रुद्राये तेजोमूर्तये नमः'
इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम दिशा में पूजा करनी चाहिए और कहना चाहिए- 'वायव्ये ऊं उग्राय वायुमूर्तये नमः'
इसी प्रकार पश्चिम दिशा में पूजा करनी चाहिए और मंत्र पढ़ना चाहिए- 'पश्चिमे ऊं भीमाकाशमूर्तये नमः'
फिर दक्षिण-पश्चिम दिशा में पूजा करनी चाहिए और कहना चाहिए- 'नैऋत्ये ऊं पशुपतये यजमानमूर्तये नमः'
फिर दक्षिण दिशा की पूजा करनी चाहिए और कहना चाहिए- 'दक्षिणे ऊं महादेवाय चंद्रमूर्तये नमः'
और आखिर में दक्षिण-पूर्व दिशा में पूजा करनी चाहिए और कहना चाहिए- 'आग्नेये ऊं ईशानाय सूर्यमूर्तये नमः'
इस प्रकार विग्रह की आठों दिशाओं में देवाधिदेव महादेव की अष्टमूर्तियों की पूजा करनी चाहिए। उसके उपरांत इंद्र आदि दस दिक्पालों और उनके वज्र आदि आयुधों की पूजा करनी चाहिए। उसके बाद तीन बार प्रदक्षिणा करनी चाहिए। फिर 'ऊं नमश्शिवाय' इस षडक्षर मंत्र का यथाशक्ति जप करना चाहिए। और 'ऊं नमो महादेवाय' इस मंत्र से विसर्जन करना चाहिए। उसके बाद श्री गणेश और कार्तिकेय की अपने-अपने मंत्रों से, सभी उपचारों से पूजा करके, उनका विसर्जन करना चाहिए।
इस प्रकार एक लाख पार्थिव लिंगों के पूजन से मनुष्य इसी लोक में मुक्ति का भागी हो जाता है, लेकिन चूंकि इतनी संख्या में पूजन करना आज के दिन आपके लिये संभव नहीं है। अतः आप केवल आज के दिन एक लिंग का निर्माण करके बतायी गयी विधि अनुसार पूजा करें। इससे आपकी मनचाही इच्छा पूरी होगी।