हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भगवान शंकर के भैरव स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन विधि- विधान से भगवान भैरव की पूजा- अर्चना की जाती है। भगवान भैरव की कृपा से सभी तरह के दोषों से मुक्ति मिल जाती है।
शास्त्र में काल भैरव को भगवान शिव का गण और माता पार्वती का अनुचर माना गया है। हिंदू धर्म शास्त्रों में काल भैरव का बहुत महत्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार भैरव शब्द का अर्थ है भय को हैराने वाला। अर्थात जो उपासक काल भैरव की उपासना करता है। उसके सभी प्रकार के भय हर उठते हैं. ऐसी मान्याता है काल भैरव में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियां समाहित रहती है। आइए जानते हैं कालाष्टमी व्रत पूजा- विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त के बारे में।
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शुभ मुहूर्त
श्रावण, कृष्ण अष्टमी प्रारम्भ - 31 जुलाई को सुबह 05 बजकर 40 मिनट से
श्रावण, कृष्ण अष्टमी समाप्त - 01 अगस्त को शाम 07 बजकर 56 मिनट पर
कालाष्टमी व्रत का महत्व
- इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से सभी तरह के भय से मुक्ति मिल जाती है।
- कालाष्टमी के दिन व्रत करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
- भैरव भगवान की कृपा से शत्रुओं से छुटकारा मिल जाता है।
पूजा- विधि
- सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करें।
- फिर भगवान भैरव की पूजा- अर्चना करें।
- संभव हो तो इस दिन व्रत रखें।
- घर के मंदिर में दीपक प्रज्वलित करें।
- इस दिन भगवान शंकर की भी विधि- विधान से पूजा- अर्चना करें।
- भगवान शंकर के साथ माता पार्वती और गणेश भगवान की पूजा- अर्चना भी करें।
- आरती करें और भगवान को भोग भी लगाएं।
- ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।