Friday, November 22, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. लाइफस्टाइल
  3. जीवन मंत्र
  4. शनि प्रदोष व्रत: इस शुभ मुहूर्त में करें भगवान शिव की आराधना, साथ ही जानिए पूजा विधि और व्रत कथा

शनि प्रदोष व्रत: इस शुभ मुहूर्त में करें भगवान शिव की आराधना, साथ ही जानिए पूजा विधि और व्रत कथा

प्रत्येक प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है, लेकिन शनि प्रदोष व्रत के दिन भदवान शिव के साथ-साथ भगवान शनि की भी पूजा अर्चना की जाएगी।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: July 17, 2020 17:45 IST
शनि प्रदोष व्रत- India TV Hindi
Image Source : INST/MAHADEV_KE_PREMI/MAHADEV_DEVADHIDEV शनि प्रदोष व्रत

श्रावण मास में जहां भगवान शिव की पूजा अर्चना, अभिषेक किया जा रही है। इस बार सावन माह में काफी शुभ योग बन रहे है। इस साथ ही इस माह  शनि प्रदोष व्रत पड़ रहे है। पहला 18 जुलाई और दूसरी 1 अगस्त को पड़ रहा है।  श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी 18 जुलाई को है। इस दिन शनिवार होने से यह शनि प्रदोष व्रत है। प्रत्येक प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है, लेकिन शनि प्रदोष व्रत के दिन भदवान शिव के साथ-साथ भगवान शनि की भी पूजा अर्चना की जाएगी। 

शनिदेव की उपासना व्यक्ति की सारी इच्छाओं को पूरा करने वाली और जीवन से हर तरह की निगेटिविटी को दूर करने वाली है। जानें शनि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रथा कथा।  

भविष्य पुराण के अनुसार त्रयोदशी की रात के पहले प्रहर में जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा के दर्शन करता है, उसे जीवन में सुख ही सुख मिलता है | लिहाजा आज के दिन शिव प्रतिमा के दर्शन अवश्य ही करने चाहिए

सावन शिवरात्रि 2020: जानें क्या है शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का सही तरीका? साथ ही जानिए शुभ मुहूर्त

शनि प्रदोष व्रत का मुहूर्त

त्रयोदशी तिथ् आरंभ: 18 जुलाई सुबह  12 बजकर 35 मिनट से

 त्रयोदशी तिथि समाप्त:  18 जुलाई रात 12 बजकर 42 तक.

भगवान शिव करें शनि से जुड़े दोष दूर

सावन के पवित्र माह में दोनों प्रदोष पड़ रहे हैं दोनों ही शनिवार को पड़ रहे है। जिसके कारण इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। अगर आपकी कुंडली में शनि दोष, साढ़े साती, शनि की लघु कल्याणी ढैय्या आदि है तो 18 जुलाई और 1 अगस्त को जरूर पूजन करें।

भगवान शिव को प्रसन्न करने के 5 बेहद सरल उपाय, पूरी होगी हर मनोकामना

प्रदोष व्रत की पूजा विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर भगवान शिव का स्मरण करते हुए इस व्रत का संकल्प करें। शाम को सूर्यास्त होने के एक घंटें पहले स्नान करके सफेद कपडे पहनें। इसके बाद ईशान कोण में किसी एकांत जगह पूजा करने की जगह बनाएं। इसके लिए सबसे पहले गंगाजल से उस जगह को शुद्ध करें फिर इसे गाय के गोबर से लिपे। इसके बाद पद्म पुष्प की आकृति को पांच रंगों से मिलाकर चौक को तैयार करें। इसके बाद आप कुश के आसन में उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर भगवान शिव की पूजा करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करें साथ में ऊं नम: शिवाय: का जाप भी करते रहें। इसके बाद बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग व इलायची चढ़ाएं। शाम के समय पुन: स्नान करके इसी तरह शिवजी की पूजा करें। शिवजी का षोडशोपचार पूजा करें, जिसमें भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजा करें। भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। आठ बार दीपक रखते समय प्रणाम करें। शिव आरती करें। शिव स्त्रोत, मंत्र जाप करें। रात्रि में जागरण करें।

Hariyali Teej 2020: कब है हरियाली तीज, साथ ही जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

शनि प्रदोष व्रत कथा

स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।

एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।

अन्य खबरों के लिए करें क्लिक

सावन शिवरात्रि 2020: भोलेनाथ की पूजा करते समय रखें इन बातों का विशेष ध्यान

वास्तु टिप्स: इस दिशा में घर पर रखें पीले रंग की चीजें, पेट संबंधी तकलीफों से मिलेगा छुटकारा

मूर्ख व्यक्ति इस अनमोल चीज का मोल कभी नहीं समझ पाता, फंस गए इसमें तो हो जाएगा बंटाधार

Sawan Shivratri 2020: कब है सावन की शिवरात्रि, साथ ही जानिए महत्व और शुभ मुहूर्त

गीता के इन 5 अनमोल वचन में छिपा हैं सफलता की कुंजी का राज, रहेंगे हमेशा खुशहाल

Latest Lifestyle News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Religion News in Hindi के लिए क्लिक करें लाइफस्टाइल सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement