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सालों से चली आ रही कांवड़ यात्रा की किसने की थी शुरुआत, कौन था पहला कांवड़िया, जानकर अचंभे में पड़ जाएंगे

सावन का महीना शुरू होते ही कांवड़ यात्रा शुरू हो जाती है। लेकिन क्या आपको पता है पहला कांवड़िया कौन था और किसने पहली बार भगवान शिव का जलाभिषेक किया था।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: July 06, 2020 14:23 IST
Lord Shiva - India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM/MRIN4NKGROVER Lord Shiva - भोलेनाथ

सावन का महीना शुरू होते ही भगवान भोलेनाथ के आराधक केसरिया कपड़े पहने जत्थे के साथ शिव जी का जलाभिषेक करने के लिए नंगे पैर निकल पड़ते हैं। इन केसरिया कपड़ों वाले आराधकों को ही कांवड़ कहा जाता है। ये कांवड़ कभी एक या दो नहीं बल्कि समूह में ही निकलते हैं। कंधे पर मन्नत का गंगाजल टांगे ये कांवड़ हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने चुने गए मंदिर में पहुंचते हैं। जहां पर वो शिव बाबा का जलाभिषेक इसी गंगाजल से करते हैं। कांवड़ यात्रा की लोकप्रियता बीते दो दशकों से काफी बढ़ गई है। अब समाज का उच्च और शिक्षित वर्ग भी कांवड़ यात्रा से जुड़ने लगा है। 

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कांवड़ यात्रा का नाम सुनते ही कई सवाल मन में उछल-कूद मचाने लगते हैं। जैसे कि वो कौन शख्स था जिसने पहली कांवड़ भगवान शिव पर चढ़ाई? ऐसा करने के पीछे उसकी क्या मंशा थी? अगर आप इन्हीं सब सवालों का जवाब तलाश रहे हैं तो आज हम आपको कांवड़ यात्रा से जुड़ा त्रेतायुग का एक कनेक्शन बताते हैं। त्रेतायुग से जुड़ा कांवड़ यात्रा का ये कनेक्शन आपको अचंभे में जरूर डाल सकता है। 

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कांवड़ यात्रा को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं। पुराणों के अनुसार कांवड़ यात्रा की परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। जिसका कनेक्शन किसी और से नहीं बल्कि परमज्ञानी रावण से जुड़ा है। दरअसल, समुद्र मंथन में निकले विष को पी लेने की वजह से भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था। अपने इसी नीलकंठ की वजह से भोलेनाथ को 'नीलकंठ' नाम भी दिया गया। भगवान शिव ने ये विष पी तो लिया लेकिन उसके नकारात्मक प्रभावों ने शिव जी को घेर लिया।

भगवान शिव को इन नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए रावण ने ध्यान किया। इसके बाद रावण ने 'पुरा महादेव' स्थित शिव मंदिर में भोलेनाथ का जलाभिषेक किया। रावण के ऐसा करने पर शिव जी को विष के नकारात्मक प्रभाव से मुक्ति मिली। मान्यता है कि यही से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।  

कांवड़ यात्रा के दौरान सभी कांवड़िए हरिद्वार गंगाजल लेने जाते हैं। मान्यता है कि पूरे श्रावण महीने में भगवान शिव अपनी ससुराल राजा दक्ष की नगरी कनखल, हरिद्वार में रहे हैं। इस वक्त भगवान विष्णु के शयन कक्ष में चले जाते हैं। इसी कारण भगवान शिव तीनों लोक की देखभाल करते हैं। यही कारण है कि इस महीने सभी कांवड़िए गंगाजल लेने हरिद्वार जाते हैं। 

सभी कांवड़िए मन में मन्नत लिए हुए गंगाजल को अपने कांवड़ में भरते हैं। इस कांवड़ को कांवड़िए रंग-बिरंगे चीजों से सजाते हैं और नंगे पैर ही अपनी यात्रा को पूरा करते हैं। अपने चयनित मंदिर में पहुंचने के लिए कांवड़ियों के पास एक निश्चित तिथि होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि सभी कांवड़ियों को सावन की चतुर्दशी के दिन भोलेनाथ का जलाभिषेक करना होता है। 

 

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