धर्म डेस्क: सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है। इस महीने के आरंभ से ही लाखों की संख्या में लोग कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं। फिर शुद्ध जल से अपने ईष्ट देव का जलाभिषेक कर यात्रा पूरी करते हैं।
पूरे देश से लोग इस यात्रा पर निकलते हैं। उत्तरी भारत में इसका चलन ज्यादा है। भोलेनाथ के भक्त कांवड़ में गंगाजल लेकर यात्रा करते हैं। वे भगवान शिव के किसी देवस्थान पहुंचकर इस जल को उन पर अर्पित करते हैं। ज्यादातर कांवड़िए केसरी रंग के वस्त्र धारण करते हैं। ये लोग मुख्य रूप से गौमुख, इलाहाबाद, हरिद्वार या गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों से गंगाजल भरते हैं।
- अगर आप भी सावन में कांवड यात्रा में जा रहे हैं। तो उससे पहले कुछ बातों का जनना बहुत ही जरुरी है। जिससे कि भगवान शिव की आपके ऊपर कृपा बनी रहें। जानिए ऐसे कौन से काम है जो कांवड यात्रा के समय नहीं करना चाहिए।
- सावन के महीने में शिवभक्त गंगाजल लाने और उससे शिवलिंग का अभिषेक करवाने के लिए कांवड़ यात्रा पर जाते हैं। वे यह पूरा सफर पैदल और नंगे पांव करते हैं।
- कांवड़ यात्रा शुरू करते ही कावड़ियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा करना वर्जित होता है।
- कांवड यात्रा पूरी होने तक मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करना होता है।
- कभी भी बिना स्नान किए कावड़ को हाथ नहीं लगा सकते, इसलिए स्नान करने के बाद ही कावड़िए अपने कावड़ को छू सकते हैं।
- कांवड यात्रा के समय चमड़े की किसी वस्तु का स्पर्श, वाहन का प्रयोग, चारपाई का उपयोग करने की मनाही होती है।
- किसी वृक्ष या पौधे के नीचे भी कावड़ को रखना वर्जित है।
- कावड़ ले जाने के पूरे रास्ते भर बोल बम और जय शिव-शंकर का उच्चारण करना फलदायी होता है।
- कावड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना भी वर्जित माना गया है। इसलिए इस बात का जरुर ध्यान रखें।