28 सितंबर को आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि और शनिवार का दिन है। इस दिन श्राद्ध की अमावस्या तिथि यानि की पंद्रहवा दिन है| जहां पितृ पक्ष की शुरुआत होते ही हमारे पितर धरती पर आते हैं और सर्व पितृ को वह अपनी फैमिली से विदा लेकर वापस चले जाते हैं। जिसके अगले दिन से ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जाती है। आज के दिन उन लोगों का किया जाता है। स्वर्गवास किसी भी महीने की अमावस्या को हुआ हो।
इन लोगों का होगा है श्राद्ध
इसके साथ ही मातामह, यानि नाना का श्राद्ध भी इसी दिन किया जायेगा। इसमें दौहित्र, यानि बेटी का बेटा ये श्राद्ध कर सकता है। भले ही उनके नाना के पुत्र जीवित हों और उसके खुद के माता पिता जीवीत हो, तो वो खुद भी ये श्राद्ध करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। कुछ ग्रंथों के अनुसार- मातामह श्राद्ध नानी-नाना का श्राद्ध नाती द्वारा नवरात्र के प्रथम दिन किया जाना चाहिये। आपको अपनी स्थानीय परम्परा का पालन करना चाहिये। इस श्राद्ध को करने वाला व्यक्ति अत्यंत सुख को पाता है। कन्याओं के बाद पुत्र या तीन पुत्रों के बाद कन्या का श्राद्ध भी इसी दिन किया जायेगा। यदि आप अपने पितरों की तिथि पर उनका श्राद्ध न कर पायें हो या आपको अपने पितरों की तिथि का ध्यान न हो तो भी आप आज के दिन श्राद्ध कर सकते है। अमावस्या के श्राद्ध के साथ ही इस दिन श्राद्ध पक्ष की समाप्ति हो जाती है।
सर्व पितृ अमावस्या शुभ मुहूर्त
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार अमावस्या तिथि 28 सितंबर की भोर 03 बजकर 47 मिनट से शुरू हुई थी और रात 11 बजकर 56 मिनट तक रहेगी।
श्राद्ध कर्म का मुहूर्त
सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कार्य दोपहर में ही किया जाता है यानि दोपहर 01 बजकर 23 मिनट से दोपहर 03 बजकर 45 मिनट तक लिहाजा अमावस्या तिथि का श्राद्ध किया जाएगा।
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सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करने की विधि
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्य देवता को जल अर्पण करें। किसी पंडित को बुलाकर पूजा अर्चना करा सकते है। इसके साथ ही इस बात का ध्यान आज के दिन लहसुन-प्याज का खाना बनाने से बचे।
- पूरे श्राद्ध में पंचबलि दी जाती है। आप चाहे तो आज के दिन भी दे सकते है। पंचबलि में गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) आते है।
- आपको इनकी बलि नही देनी है बल्कि पितर को दिया हुए भोजन से इन 5 के लिए भी भोजन निकाल कर रखना है।
- इस दिन तर्पण और पिंडदान करे।
- पूजा-अर्चना के बाद पुरोहित को सम्मान के साथ भोजन कराएं इसके साथ ही अपनी इच्छा के अनुसार भोजन दें।
- शाम के समय 5 या 16 दीपक जलाएं।