नई दिल्ली: बसंत पचंमी को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है और इसे हर साल हिंदू शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन कई मायनों में खास है क्योंकि इस दिन मां सरस्वती वंदना की जाती है। और यह भारत के बंगाल और उत्तर भारत जैसे राज्यों में मनाया जाता है। जैसा कि आप सभी जानते है हमेशा से मां सरस्वती को शिक्षा, संगीत और कला की जननी माना गया है। हर साल की तरह इस साल भी बसंत पंचमी और मां सरस्वती पूजा 10 फरवरी को मनाया जाएगा।
बसंत पंचमी के दिन को मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। हिंदु धर्म में प्रचलित कथा के मुताबिक बसंत पंचमी के दिन ही ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती की सरंचना की थी। एक ऐसी देवी जिनके चार हाथ थे, एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। ब्रह्मा जी ने इस देवी से वीणा बजाने को कहा, जिसके बाद संसार में मौजूद हर चीज़ में स्वर आ गया। इसलिए ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी नाम दिया। इसी वजह से मां सरस्वती को ज्ञान, संगीत, कला की देवी कहा जाता है। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की खास पूजा की जाती है। अगर आप भी ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा करें, तो यहां दी गई विधि को अपनाएं।
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने के लिए सबसे पहले सरस्वती की प्रतिमा रखें।
कलश स्थापित कर सबसे पहले भगवान गणेश का नाम लेकर पूजा करें।
सरस्वती माता की पूजा करते समय सबसे पहले उन्हें आमचन और स्नान कराएं।
माता को पीले रंग के फूल अर्पित करें, माला और सफेद वस्त्र पहनाएं फिर मां सरस्वती का पूरा श्रृंगार करें।
माता के चरणों पर गुलाल अर्पित करें।
सरस्वती मां पीले फल या फिर मौसमी फलों के साथ-साथ बूंदी चढ़ाएं।
माता को मालपुए और खीर का भोग लगाएं।
सरस्वती ज्ञान और वाणी की देवी हैं। पूजा के समय पुस्तकें या फिर वाद्ययंत्रों का भी पूजन करें।
कई लोग बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का पूजन हवन से करते हैं। अगर आप हवन करें तो सरस्वती माता के नाम से 'ओम श्री सरस्वत्यै नम: स्वहा" इस मंत्र से एक सौ आठ बार जाप करें।
साथ ही संरस्वती मां के वंदना मंत्र का भी जाप करें।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
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