सारी रात जगकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। इसी साथ भगवान से किसी प्रकार हुआ गलती के लिए क्षमा भी मांगे। अगले दूसरे दिन यानी की 25 दिसंबर, रविवार के दिन सुबह पहले की तरह करें। इसके बाद ब्राह्मणों को ससम्मान आमंत्रित करके भोजन कराएं और अपने अनुसार उन्हे भेट और दक्षिणा दे। इसके बाद सभी को प्रसाद देने के बाद खुद भोजन करें।
व्रत के दिन व्रत के सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही साथ जहां तक हो सके व्रत के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए। भोजन में उसे नमक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए। इससे आपको हजारों यज्ञों के बराबर फल मिलेगा।
सफला एकादशी की कथा
पद्म पुराण में सफला एकादशी की जो कथा मिलती है उसके अनुसार महिष्मान नाम का एक राजा था। इनका ज्येष्ठ पुत्र लुम्पक पाप कर्मों में लिप्त रहता था। इससे नाराज होकर राजा ने अपने पुत्र को देश से बाहर निकाल दिया। लुम्पक जंगल में रहने लगा। पौष कृष्ण दशमी की रात में ठंड के कारण वह सो न सका।
सुबह होते होते ठंड से लुम्पक बेहोश हो गया। आधा दिन गुजर जाने के बाद जब बेहोशी दूर हुई तब जंगल से फल इकट्ठा करने लगा। शाम में सूर्यास्त के बाद यह अपनी किस्मत को कोसते हुए भगवान को याद करने लगा। एकादशी की रात भी अपने दुःखों पर विचार करते हुए लुम्पक सो न सका।
इस तरह अनजाने में ही लुम्पक से सफला एकादशी का व्रत पूरा हो गया। इस व्रत के प्रभाव से लुम्पक सुधर गया और इनके पिता ने अपना सारा राज्य लुम्पक को सौंप दिया और खुद तपस्या के लिए चले गये। काफी समय तक धर्म पूर्वक शासन करने के बाद लुम्पक भी तपस्या करने चला गया और मृत्यु के पश्चात इसे विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ।
जो लोग यह व्रत नहीं कर पाते हैं उनके लिए शास्त्रों में यह विधान है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करें। दैनिक जीवन के कार्य करते हुए भगवान का स्मरण करें। संध्या के समय पुनः भगवान की पूजा और आरती के बाद भगवान की कथा का पाठ करें। एकादशी के दिन चावल से बना भोजन, लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा का सावन न करें।
पद्म पुराण में सफला एकादशी की एक ही कथा के बारें में लिखा है। इसके अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया है कि सफला एकादशी व्रत के देवता श्री नारायण हैं। जो व्यक्ति सफला एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करता है। रात्रि में जागरण करते हैं ईश्वर का ध्यान और श्री हरि के अवतार एवं उनकी लीला कथाओं का पाठ करता है उनका व्रत सफल होता है।
इस प्रकार से सफला एकादशी का व्रत करने वाले पर भगवान प्रसन्न होते हैं। व्यक्ति के जीवन में आने वाले दुःखों को पार करने में भगवान सहयोग करते हैं। जीवन का सुख प्राप्त कर व्यक्ति मृत्यु के पश्चात सद्गति को प्राप्त होता है।