आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि और सोमवार का दिन है | आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की तृतीया को रम्भा तृतीया का व्रत करने का विधान है | रम्भा तृतीया को रम्भा तीज के नाम से भी जाना जाता है | दरअसल आज का दिन अप्सरा रम्भा को विशेष रूप से समर्पित है | मान्यताओं के अनुसार सागर मंथन से उत्पन्न हुए 14 रत्नों में से एक रम्भा भी थीं | कहा जाता है कि- रम्भा बेहद सुंदर थीं और इनके रूप पर सभी मोहित थें | इसी कारण से आज रम्भा तृतीया के दिन कई साधक रम्भा के नाम से साधना कर सम्मोहिनी शक्तियां प्राप्त करते हैं | यह साधना रात के समय लगातार 9 दिनों तक की जाती है | वैसे तो ये साधना पूर्णिमा, अमावस्या या शुक्रवार के दिन भी शुरू की जा सकती है, लेकिन साल में एक बार रम्भा तृतीया के दिन से इस साधना को शुरू करने पर विशेष फलों की प्राप्ति होती है |
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार तखण्ड के भाग-1 के पृष्ठ 426 से 430 में, कालनिर्णय के पृष्ठ 176 और तिथितत्व के पृष्ठ 30 से 31 में उल्लेख मिलता है कि ये व्रत नारियों के लिये है | इस व्रत को स्वयं देवी रम्भा ने सौभाग्य प्राप्ति के लिये किया था अतः आप भी आज के दिन इस व्रत को करके सौभाग्य पा सकते हैं | आपको बता दूं कि- सुहागिनों के साथ-साथ अविवाहित लड़कियां भी अच्छे वर की कामना के लिये इस व्रत को कर सकती हैं | रम्भा की साधना करने पर व्यक्ति के अंदर एक अलग ही तरह की आकर्षण शक्ति पैदा हो जाती है, जिससे वह किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर सकता है, उसे सम्मोहित कर सकता है और अपनी इच्छाओं को पूर्ण कर सकता है | कहते हैं सिद्धि प्राप्त करने पर रम्भा साधक के जीवन में एक छाया के रूप में सदैव साथ रहती है और साधक के जीवन को प्यार और खुशियों से भर देती है | लिहाजा आप भी जीवन में प्यार और खुशियां पाना चाहते हैं, अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाना चाहते हैं, तो आपको विधि-पूर्वक अप्सरा रम्भा की साधना जरूर करनी चाहिए |
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रम्भा साधना के लिये आप सबसे पहले स्नान करके, साफ-सुन्दर कपड़े पहन कर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पीले रंग के आसन पर बैठ जायें | फिर अपने सामने पुष्पों की दो माला रखें और अगरबत्ती और घी का एक दीपक जलाएं | वहीं पर सामने एक खाली धातु की कटोरी भी रखें | फिर दोनों हाथों में गुलाब की पंखुड़ियां लेकर परम रुपसी रम्भा का ध्यान करते हुए 108 बार "ह्रीं रम्भे आगच्छ आगच्छ" इन शब्दों से रम्भा का आवाहन करें | आवाहन के बाद 11 माला इस मंत्र का जप करें |
मंत्र इस प्रकार है -ह्रीं ह्रीं रं रम्भे आगच्छ आज्ञां पालय पालय मनोवांछितं देहि रं ह्रीं ह्रीं
इस प्रकार जप के दौरान अपने ध्यान को विलास पूर्वक रम्भा के रूप में लगाये रखना चाहिए और पूजा स्थल को सुगंधित रखना चाहिए | इस प्रकार मंत्र जप और पूजा के बाद देवी का स्मरण कर उनसे सदैव अपने साथ रहने का अनुरोध करना चाहिए और इसी प्रकार नौ दिनों तक लगातार रम्भा की उपासना करनी चाहिए | इस साधना में चौथे दिन से कुछ-कुछ अनुभव होने लगते हैं और नौवे दिन साक्षात्कार का अनुभव होता है, लेकिन ध्यान रहे कि अपना अनुभव किसी से भी शेयर नहीं करना चाहिए |
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