Friday, November 29, 2024
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कल रमा एकादशी ऐसे करें पूजा और जानें व्रत कथा

नई दिल्ली: हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत की महत्वपूर्ण जगह है। हर साल 24 एकादशियां होती हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा है। यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है।

India TV Lifestyle Desk
Updated : November 06, 2015 13:27 IST

india TVइसके बाद दूसरे दिन यानी कि 8 नवंबर , रविवार को आप व्रत विधि-विधान के साथ तोड़े। इस दिन भगवान श्री कृष्ण को मिश्री और मान का भोग लगाएं।इसके लिए रविवार के दिन ब्राह्मणों को आमंत्रित करें। इसके बाद उन्हें आदर के साथ भोजन करा कर । दान-दक्षिणा देकर सम्मान के साथ विदा करें।

श्रीपद्म पुराण के अनुसार ये है रमा एकादशी व्रत की कथा

प्राचीन काल में मुचुकुंद नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके मित्रों में इन्द्र, वरूण, कुबेर और विभीषण आदि थे। वह बड़े धार्मिक प्रवृति वाले व सत्यप्रतिज्ञ थे। वह श्री विष्णु का भी परम भक्त था। उसके राज्य में किसी भी तरह का पाप नहीं होता है। मुचुकुंद के घर एक कन्या ने जन्म का जन्म हुआ। जिसका नाम चंद्रभागा रखा। जब वह बड़ी हुई तो उसका विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र साभन के साथ किया।

एक दिन शोभन अपने ससुर के घर आया तो संयोगवश उस दिन एकादशी थी। शोभन ने एकादशी का व्रत करने का निश्चय किया। चंद्रभागा को यह चिंता हुई कि उसका पति भूख कैसे सहन करेगा? इस विषय में उसके पिता के आदेश बहुत सख्त थे।

राज्य में सभी एकादशी का व्रत रखते थे और कोई अन्न का सेवन नहीं करता था। शोभन ने अपनी पत्नी से कोई ऐसा उपाय जानना चाहा, जिससे उसका व्रत भी पूर्ण हो जाए और उसे कोई कष्ट भी न हो, लेकिन चंद्रभागा उसे ऐसा कोई उपाय न सूझा सकी। निरूपाय होकर शोभन ने स्वयं को भाग्य के भरोसे छोड़कर व्रत रख लिया। लेकिन वह भूख, प्यास सहन न कर सका और उसकी मृत्यु हो गई। इससे चंद्रभागा बहुत दु:खी हुई। पिता के विरोध के कारण वह सती नहीं हुई।

उधर शोभन ने रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से मंदराचल पर्वत के शिखर पर एक उत्तम देवनगर प्राप्त किया। वहां ऐश्वर्य के समस्त साधन उपलब्ध थे। गंधर्वगण उसकी स्तुति करते थे और अप्सराएं उसकी सेवा में लगी रहती थीं। एक दिन जब राजा मुचुकुंद मंदराचल पर्वत पर आए तो उन्होंने अपने दामाद का वैभव देखा। वापस अपनी नगरी आकर उसने चंद्रभागा को पूरा हाल सुनाया तो वह अत्यंत प्रसन्न हुई। वह अपने पति के पास चली गई और अपनी भक्ति और रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।

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