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Rama Ekadashi 2019: रमा एकादशी 24 को, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी को ‘रम्भा’ या ‘रमा’ एकादशी के नाम से जाना जाता है । रम्भा या रमा एकादशी के दिन श्री केशव, यानी विष्णु जी की पूजा का विधान है। 

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: October 23, 2019 18:38 IST
Rama Ekadashi- India TV Hindi
Rama Ekadashi

कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि और गुरुवार का दिन है । एकादशी तिथि कल यानि कि 23 अक्टूबर की रात 12 बजकर 10 मिनट से शुरू हो चुकी है और

24 अक्टूबर की रात 10 बजकर 19 मिनट तक रहेगी | इसके साथ ही गुरुवार को एकादशी तिथि है और रम्भा एकादशी का व्रत किया जायेगा | कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी को ‘रम्भा’ या ‘रमा’ एकादशी के नाम से जाना जाता है । रम्भा या रमा एकादशी के दिन श्री केशव, यानी विष्णु जी की पूजा का विधान है। वैसे भी कार्तिक मास चल रहा है और इस दौरान श्री विष्णु की पूजा बड़ी ही फलदायी है। ऐसे में एकादशी पड़ने से इस दिन विष्णु पूजा के लिए और भी प्रशस्त हो गया है। 

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रम्भा एकादशी के दिन केशव की पूजा करने से और व्रत करने से व्यक्ति को उत्तम लोक की प्राप्ति होती है | इस व्रत को करने से मन और शरीर दोनों स्वस्थ रहते हैं | इससे मन की एकाग्रता बढ़ती है और काम में मन लगता है। साथ ही धन-धान्य और सुख की प्राप्ति होती है और विवाह संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है| जानें रमा एकादशी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि। 

रमा एकादशी शुभ मुहूर्त
रमा एकादशी तिथि प्रारम्भ: 23 अक्टूबर रात 12 बजकर 10 मिनट से
रमा एकादशी तिथि समाप्त: 24 अक्टूबर रात 10 बजकर 19 मिनट तक
रमा एकादशी पारण समय: 25 अक्टूबर को सुबह 06:40 से 08:40 बजे तक

रमा एकादशी पूजन विधि
रमा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठे। अपने सभी कामों से निवृत्त स्नान करें और इस व्रत को करने के लिए संकल्प लें। अगर आप निराहार रहना चाहते है तो संकल्प ले । अगर आप एक समय फलाहार लेना चाहते है तो उसी प्रकार संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करें। आप चाहे तो किसी पंडित को भी बुला सकते है। पूजा करने के बाद भगवान को भोग लगाएं  और सभी को प्रसाद को बांट दें। इसके बाद शाम को भी इसी तरह पूजा करें और रात के समय भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के पास बैठकर श्रीमद्भागवत या गीता का पाठ करें।

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इसके बाद दूसरे दिन यानी कि 25 अक्टूबर, शुक्रवार को आप व्रत विधि-विधान के साथ तोड़े। इस दिन भगवान श्री कृष्ण को मिश्री और मान का भोग लगाएं। इसके लिए रविवार के दिन ब्राह्मणों को आमंत्रित करें। इसके बाद उन्हें आदर के साथ भोजन करा कर । दान-दक्षिणा देकर सम्मान के साथ विदा करें।

श्रीपद्म पुराण के अनुसार ये है रमा एकादशी व्रत की कथा
प्राचीन काल में मुचुकुंद नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके मित्रों में इन्द्र, वरूण, कुबेर और विभीषण आदि थे। वह बड़े धार्मिक प्रवृति वाले व सत्यप्रतिज्ञ थे। वह श्री विष्णु का भी परम भक्त था। उसके राज्य में किसी भी तरह का पाप नहीं होता है। मुचुकुंद के घर एक कन्या ने जन्म का जन्म हुआ। जिसका नाम चंद्रभागा रखा। जब वह बड़ी हुई तो उसका विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र साभन के साथ किया।

एक दिन शोभन अपने ससुर के घर आया तो संयोगवश उस दिन एकादशी थी। शोभन ने एकादशी का व्रत करने का निश्चय किया। चंद्रभागा को यह चिंता हुई कि उसका पति भूख कैसे सहन करेगा? इस विषय में उसके पिता के आदेश बहुत सख्त थे।

राज्य में सभी एकादशी का व्रत रखते थे और कोई अन्न का सेवन नहीं करता था। शोभन ने अपनी पत्नी से कोई ऐसा उपाय जानना चाहा, जिससे उसका व्रत भी पूर्ण हो जाए और उसे कोई कष्ट भी न हो, लेकिन चंद्रभागा उसे ऐसा कोई उपाय न सूझा सकी। निरूपाय होकर शोभन ने स्वयं को भाग्य के भरोसे छोड़कर व्रत रख लिया। लेकिन वह भूख, प्यास सहन न कर सका और उसकी मृत्यु हो गई। इससे चंद्रभागा बहुत दु:खी हुई। पिता के विरोध के कारण वह सती नहीं हुई।

उधर शोभन ने रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से मंदराचल पर्वत के शिखर पर एक उत्तम देवनगर प्राप्त किया। वहां ऐश्वर्य के समस्त साधन उपलब्ध थे। गंधर्वगण उसकी स्तुति करते थे और अप्सराएं उसकी सेवा में लगी रहती थीं। एक दिन जब राजा मुचुकुंद मंदराचल पर्वत पर आए तो उन्होंने अपने दामाद का वैभव देखा। वापस अपनी नगरी आकर उसने चंद्रभागा को पूरा हाल सुनाया तो वह अत्यंत प्रसन्न हुई। वह अपने पति के पास चली गई और अपनी भक्ति और रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन के साथ सुख पूर्वक रहने लगी।

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