भगवान कृष्ण ने भागवत में कहा है कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’
अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षासूत्र भी लोगों को जोड़ता है।
गीता में ही लिखा गया है कि जब संसार में नैतिक मूल्यों में कमी आने लगती है, तब ज्योतिर्लिंगम शिव प्रजापति ब्रह्मा द्वारा पृथ्वी पर पवित्र धागे भेजते हैं, जिन्हें मंगलकामना करते हुए लोग एक दुसरे को बांधते हैं तथा परमेश्वर शिव उन लोगों को नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दु:ख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।
ऐसे करें पूजा
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें और विधि-विधान के साथ हरिद्रा गणेश, सर्पनाथ भैरव और शिव के ताड़केश्वर स्वरुप का विधिवत पूजन करें। धूप दीप पुष्प गंध और नववैध अर्पित करें। गणेश जी पर दूर्वा, सिंदूर लड्डू चढ़ाएं। भैरव जी पर उड़द गुड़ और सिंदूर अर्पित करें। तत्पश्चात ताड़ के पत्ते पर 'त्रीं ताडकेश्वर नमः' लिखकर घर के उत्तर दिशा के द्वार पर टांग दें।
ताड़ के पत्ते के साथ-साथ एक पीले रंग की पोटली में दूर्वा, अक्षत, पीली सरसों, कुशा और हल्दी बांधकर टांग दें। पूजन में गणेश भैरव और शिव के चित्रों पर रक्षासूत्र स्पर्श करवाकर घर के सभी सदस्यों को बांधें। इसके बाद बाएं हाथ में काले नमक की डली अथवा उड़द लेकर हकीक अथवा गोमेदक की माला से 'कुरुल्ले हुं फट्स्वाहा' मंत्र का जाप करें।
जाप पूरा होने के बाद रात के समय नाग, बैताल ब्रह्मराक्षस और दश दिगपाल आदि का खीर से पूजन कर रात्रि के समय उनके लिए घर की दक्षिण पश्चिम दिशा में खीर का भोग रखें। बाएं हाथ में ली हुई काले नमक की डली अथवा उड़द पीले कपड़े में बांधकर घर की दक्षिण पश्चिम दिशा में छुपाकर रख दें।
इस पूजन और उपाय से सारे परिवार के प्राणों की रक्षा होती है। इस पूजन से सर्प और देव, गन्धर्व प्रसन्न होते हैं और वंशजों की रक्षा होती है। तथा परमेश्वर शिव प्रसन्न होकर नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दु:ख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।