"इदं रक्षाबंधनं नियतकालत्वात भद्रावर्ज्य ग्रहणदिनेपि कार्यं होलिकावत्। ग्रहणसंक्रांत्यादौ रक्षानिषेधाभावात्।"
इसका मतलब है कि ग्रहण का सूतक अनियतकाल के कर्मों में लगता है और रक्षाबंधन का त्योहार हमेशा श्रावण मास की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है। यह नियत काल में होती है। इसे न तो पूर्णिमा से पहले दिन मनाया जा सकता है और न ही दूसरे दिन। नियत काल में होने वाले त्योहारों पर भद्रा को छोड़कर ग्रहण के सूतक का असर नहीं होता। ठीक उसी तरह, जिस तरह होली पर ग्रहण का दोष नहीं लगता।
इस श्लोक के अनुसार आप सूतक लगने के बाद भी राखी बांध सकते है। बस इस बात का ध्यान रखें कि राखी राहुकाल के समय न बांधे। रक्षाबंधन के दिन राहुकाल सुबह 7 बजकर 27 मिनट से 9 बजकर 6 मिनट तक रहेगा।
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