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Pradosh Vrat 2021: सुख-समृद्धि के लिए रखें प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

चैत्र कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि और दिन शुक्रवार है। त्रयोदशी तिथि शुक्रवार को पूरा दिन पूरी रात पार कर शनिवार भोर 4 बजकर 28 मिनट तक रहेगी।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : April 08, 2021 23:11 IST
Pradosh Vrat 2021: अप्रैल माह में कब है प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
Image Source : INSTAGRAM/KOYASINCENSE Pradosh Vrat 2021: अप्रैल माह में कब है प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

चैत्र कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि और दिन शुक्रवार है। त्रयोदशी तिथि शुक्रवार को पूरा दिन पूरी रात पार कर शनिवार भोर 4 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। हर माह के कृष्ण और शुक्ल, दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत होता है। प्रदोष व्रत 9 अप्रैल को पड़ रहा है। 

सप्ताह के सातों दिनों में से जिस दिन प्रदोष व्रत पड़ता है, उसी के नाम पर उस प्रदोष का नाम रखा जाता है | जैसे सोमवार को आने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष कहा जाता है, मंगलवार को आने वाले प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष कहा जाता है वैसे ही आज शुक्रवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को शुक्र प्रदोष कहा जायेगा। 

भविष्य पुराण के हवाले से बताया गया है कि त्रयोदशी की रात के पहले प्रहर में जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा के दर्शन करता है- वह सभी पापों से मुक्त होता है।

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प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त:

त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ- 9 अप्रैल, शुक्रवार, सुबह 3 बजकर 16 मिनट से

त्रयोदशी तिथि समाप्त- 10 अप्रैल, शनिवार, सुबह 4 बजकर 28 मिनट पर 

प्रदोष व्रत की पूजा विधि

ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर हर कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके साथ ही साफ वस्त्र धारण करें और भगवान शिव का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प करें। इस दिन कोई आहार न लें। शाम को सूर्यास्त होने के एक घंटे पहले स्नान करके सफेद कपड़े पहन लें। इसके बाद ईशान कोण में किसी एकांत जगह पूजा करने की जगह बनाएं। इसके लिए सबसे पहले गंगाजल से उस जगह को शुद्ध करें फिर इसे गाय के गोबर से लीपें। इसके बाद पद्म पुष्प की आकृति को पांच रंगों से मिलाकर चौक तैयार करें। आप कुश के आसन में उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर भगवान शिव की पूजा करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करें साथ में ऊं नम: शिवाय: का जाप भी करते रहें। इसके बाद विधि-विधान के साथ शिव की पूजा करें फिर इस कथा को सुन कर आरती करें और प्रसाद बाटें।

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अब केले के पत्तों और रेशमी वस्त्रों की सहायता से एक मंडप तैयार करें। आप चाहें तो आटे, हल्दी और रंगों की सहायता से पूजाघर में एक अल्पना (रंगोली) बना लें। इसके बाद साधक (व्रती) को कुश के आसन पर बैठ कर उत्तर-पूर्व की दिशा में मुंह करके भगवान शिव की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। व्रती को पूजा के समय 'ॐ नमः शिवाय' और शिवलिंग पर दूध, जल और बेलपत्र अर्पित करना चाहिए। फिर संध्या में, यानी प्रदोष काल के समय भी पुनः इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए | इस प्रकार जो व्यक्ति भगवान शिव की पूजा आदि करता है और प्रदोष का व्रत रखता है, वह सभी पापकर्मों से मुक्त होकर पुण्य को प्राप्त करता है और उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है | 

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