धर्म डेस्क: अधिक मास में प्रदोष व्रत का होना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसके साथ-साथ इस बार प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ रहा है। जिसके कारण इसका महत्व तीन गुना और बढ़ गया है। 11 जून को सोम प्रदोष व्रत मनाया जाएगा।
इस व्रत को करने से सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है, बंदी कारागार से छूट जाता है। जो स्त्री पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएं कैलाशपति शंकर जी पूरी करते हैं।
प्रदोष व्रत का महत्व
यदि व्यक्ति को सभी प्रकार की पूजा पाठ और व्रत करने के बाद भी सुख शांति और खुशी नहीं मिल पा रही है तो उस व्यक्ति को हर माह पड़ने वाले प्रदोष व्रत पर जप, दान, व्रत आदि करने से पूरा फल मिलता है। यदि व्यक्ति चंद्रमा के कारण परेशान है तो उसे वर्ष भर के सारे प्रदोष व्रत करने चाहिये।
सोम प्रदोष व्रत की पूजा विधि
ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर सभी कामों से निवृत्त होकर भगवान शिव का स्मरण करें। इसके साथ ही इस व्रत का संकल्प करें। इस दिन भूल कर भी कोई आहार न लें। शाम को सूर्यास्त होने के एक घंटें पहले स्नान करके सफेद कपडे पहने।
इसके बाद ईशान कोण में किसी एकांत जगह पूजा करने की जगह बनाएं। इसके लिए सबसे पहले गंगाजल से उस जगह को शुद्ध करें फिर इसे गाय के गोबर से लिपे। इसके बाद पद्म पुष्प की आकृति को पांच रंगों से मिलाकर चौक को तैयार करें।
इसके बाद आप कुश के आसन में उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर भगवान शिव की पूजा करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करें साथ में ऊं नम: शिवाय: का जाप भी करते रहें। इसके बाद विधि-विधान के साथ शिव की पूजा करें फिर इस कथा को सुनें।
कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 11, 21 या 108 बार “ऊं ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा” मंत्र से आहुति दें। उसके बाद शिव जी की आरती करें। उपस्थित जनों को आरती दें। सभी को प्रसाद वितरित करें। उसके बाद भोजन करें। भोजन में केवल मीठी सामग्रियों का उपयोग करें।