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Pitru Paksha 2021: गया से कुरुक्षेत्र तक, जानें इन जगहों पर श्राद्ध करना क्यों माना है खास?

कुछ विशेष जगह हैं, जहां श्राद्धकर्म या पिंडदान करने से व्यक्ति को विशेष सिद्धियां प्राप्त होती हैं। जानिए देश में मौजूद ऐसी ही कुछ जगहों के बारे में

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : September 24, 2021 15:08 IST
Best places to pind daan in shradh
Image Source : INSTAGRAM/YOURSTARSTELL Best places to pind daan in shradh 

कहा गया है कि समुद्र या समुद्र में गिरने वाली नदी के तट पर, गौशाला में, जहां बैल न हों, नदी के संगम पर, उच्च गिरिशिखर पर, लीपी-पुती साफ और सुंदर भूमि पर विधिपूर्वक और निष्काम भाव से किये गए श्राद्ध से सभी मनोरथ पूरे होते हैं । शास्त्रों में कुछ प्रमुख तीर्थ स्थलों का उल्लेख मिलता है, जहां श्राद्धकर्म या पिंडदान करने से व्यक्ति को विशेष सिद्धियां प्राप्त होती हैं। आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए इस जगहों का महत्व। आपको बता दें कि इस बार पितृ पक्ष 21 सितंबर से शुरू हुआ है और 6 अक्टूबर तक रहेगा।

 बोधगया

बिहार राज्य की फल्गु नदी के किनारे मगध क्षेत्र में स्थित यह सबसे प्राचीन और पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है, जहां अपने पुरखों का पिंडदान करने बहुत से लोग जाते हैं। यही वो स्थान है, जहां बोधि नामक पेड़ के नीचे भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। 

विष्णु पुराण और वायु पुराण में इसे मोक्ष की भूमि कहा गया है। माना जाता हैं यहां स्वयं विष्णु पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं। यहां किया गया पिंडदान 108 कुल और सात पीढ़ियों तक का उद्धार  कर देता है। कहते हैं स्वयं ब्रह्मा जी ने अपने पूर्वज़ों का पिंडदान गया में फल्गु नदी के तट पर किया था और त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान यहीं किया था।

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बताया जाता है कि यहां 360 वेदियां थीं, लेकिन अब केवल 48 ही रह गयी हैं, जहां पर पितरों का पिंडदान किया जाता है। यहीं पर एक जगह है- अक्षयवट, जहां पितरों के निमित दान करने की भी परंपरा है। यहां किया गया दान अक्षय होता है, जितना दान किया जाए उतना ही पुण्य आपको वापस जरूर मिलता है।

काशी 
धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी मोक्ष की नगरी के नाम से ही जानी जाती है। पितरों को प्रेत बाधाओं से मुक्ति दिलाने के लिये काशी में श्राद्ध व पिंडदान किया जाता है। सात्विक, राजस, तामस- ये तीन तरह की प्रेत आत्माएं मानी जाती हैं और इन प्रेत योनियों से मुक्ति के लिये देश भर में सिर्फ काशी के पिशाच मोचन कुण्ड पर ही मिट्टी के तीन कलश की स्थापना की जाती है और कलश पर भगवान शंकर, ब्रह्मा और विष्णु के प्रतीक के रूप में काले, लाल और सफेद रंग के झंडे लगाए जाते हैं । इसके बाद श्राद्ध कार्य किया जाता है। काशी में श्राद्ध करने वाले के घर में हमेशा खुशियों का आगमन बना रहता है।

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हरिद्वार
हरिद्वार में नारायणी शिला के पास पूर्वज़ों का पिंडदान किया जाता है। माना जाता है कि यहां पर पिंडदान करने से पितरों का आशीर्वाद हमेशा पिंडदान करने वाले पर बना रहता है और उसके जीवन में हमेशा शांति बनी रहती है, साथ ही भाग्य हमेशा उसका साथ देता है।

कुरुक्षेत्र
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में पिहोवा तीर्थ पर अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध करना सबसे उत्तम माना जाता है। खासकर कि अमावस्या के दिन। जिनका स्वर्गवास समय से पहले किसी एक्सीडेंट या किसी शस्त्राघात से हो गया हो तो उनका श्राद्ध यहां किया जाता है। यह स्थान सरस्वती नदी के किनारे ही स्थित है। यहां श्राद्ध या पिंडदान करने वाले को श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है और वह संतान बुढ़ापे में उसका सहारा बनती है।

महाभारत के अनुसार धर्मराज युधिष्ठर ने युद्ध में मारे गए अपने परिजनों का श्राद्ध और पिंडदान पिहोवा तीर्थ पर ही किया था। वामन पुराण में इस जगह के बारे में उल्लेख मिलता है कि पुरातन काल में राजा पृथु ने अपने वंशज राजा वेन का श्राद्ध यहीं पर किया था, जिसके बाद ही राजा वेन की तृप्ति हुई। 

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