आज आश्विन कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि और गुरुवार का दिन है, पंचमी तिथि कल शाम 06:13 मिनट से शुरू हुई थी और आज शाम 07:27 मिनट तक रहेगी। चूंकि आज दोपहर के समय पंचमी तिथि है अतः आज के दिन पंचमी तिथि वालों का, यानी उन लोगों का श्राद्ध कर्म किया जायेगा, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ हो। साथ ही जिनका देहांत अविवाहित अवस्था में, यानी कि शादी से पहले ही हो गया हो, उनका श्राद्ध भी आज ही के दिन किया जायेगा। इस दिन श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को विशेष प्रसाद के रूप में उत्तम लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। जानें आचार्य इंदु प्रकाश से कैसे करें तर्पण।
श्राद्ध में तर्पण का बहुत अधिक महत्व है। तर्पण से पितर संतुष्ट और तृप्त होते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जिस प्रकार वर्षा का जल सीप में गिरने से मोती, कदली में गिरने से कपूर, खेत में गिरने से अन्न और धूल में गिरने से कीचड़ बन जाता है, उसी प्रकार तर्पण के जल से सूक्ष्म वाष्पकण देव योनि के पितर को अमृत, मनुष्य योनि के पितर को अन्न, पशु योनि के पितर को चारा और अन्य योनियों के पितरों को उनके अनुरूप भोजन और सन्तुष्टि प्रदान करते हैं। साथ ही जो व्यक्ति तर्पण कार्य पूर्ण करता है, उसे हर तरफ से, हर तरह का लाभ मिलता है और नौकरी व बिजनेस में सफलता मिलती है।
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आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार तर्पण कर्म मुख्य रूप से छः प्रकार से किये जाते हैं, जो कि इस प्रकार हैं - पहला देव-तर्पण.... दूसरा ऋषि तर्पण..... अगला दिव्य मानव तर्पण..... दिव्य पितृ-तर्पण, यम तर्पण और आखिरी मनुष्य-पितृ तर्पण । इस प्रकार 6 प्रकार के तर्पण कार्य होते हैं, जिसमें से श्राद्ध के दौरान दिव्य पितृ-तर्पण किया जाता है। अब हम आपको बतायेंगे कि आपको पितृ तर्पण किस प्रकार करना है।
ऐसे करें तर्पण
तर्पण के लिये एक लोटे में साफ जल लेकर उसमें थोड़ा दूध और काले तिल मिलाकर तर्पण कार्य करना चाहिए। पितरों का तर्पण करते समय एक पात्र में जल लेकर दक्षिण दिशा में मुख करके बायां घुटना मोड़कर बैठें और अगर आप जनेऊ धारक हैं, तो अपने जनेऊ को बायें कंधे से उठाकर दाहिने कंधे पर रखें और हाथ के अंगूठे के सहारे से जल को धीरे-धीरे नीचे की ओर गिराएं।
इस प्रकार घुटना मोड़कर बैठने की मुद्रा को पितृ तीर्थ मुद्रा कहते हैं। इसी मुद्रा में रहकर अपने सभी पितरों को तीन-तीन अंजुलि जल देना चाहिए और ध्यान रहे तर्पण हमेशा साफ कपड़े पहनकर श्रद्धा से करना चाहिए। बिना श्रद्धा के किया गया धर्म-कर्म तामसी तथा खंडित होता है। इसलिए श्रद्धा भाव होना जरूरी है।