पितृ पक्ष 1 सितंबर से शुरू हो रहा है। इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि श्राद्ध के ये दिन पितरों के तर्पण के लिए होते हैं। पितृ पक्ष के दौरान कौए का भी बहुत महत्व है। इसी वजह से श्राद्ध का एक अंश कौए को भी दिया जाता है। पुराणों में कौए को लेकर खास बात लिखी है। मान्यता है कि कौआ पितरों का आश्रय स्थल माना जाता है। श्राद्ध में अगर कौआ आकर श्राद्ध के निकले अंश को ग्रहण कर लें पितरों की कृपा आप पर हो गई। जानिए पितृ पक्ष में कौए को लेकर कौन सी बातें प्रचलित हैं...
पितरों का आश्रय स्थल
श्राद्ध पक्ष में कौए का बहुत महत्व होता है। श्राद्ध पक्ष में कौए का अंश निकाला जाता है। अगर कौआ उस अंश को खा लेता है तो माना जाता है कि पितरों ने इसे ग्रहण कर लिया है। कौआ यम का दूत होता है।
पितृ पक्ष में कौआ का दिखना शुभ
पितृ पक्ष में कौआ का विशेष महत्व होता है। इस बार पितृ पक्ष 1 सितंबर से 17 सितंबर तक हैं। इन दिनों कौआ का दर्शन शुभ माना जाता है। इन दिनों में कौए और पीपल को पितृ का प्रतीक माना जाता है। इसी वजह से कौए और पीपल को खाना खिलाकर ऐसा माना जाता है कि पितृ तृप्त हो गए।
कौए का समुद्र मंथन से है संबंध
धर्म ग्रंथों के अनुसार कौए का संबंध समुद्र मंथन से भी है। जब देवताओं और राक्षसों को समुद्र मंथन से अमृत मिला था तब कौए ने अमृत को चख लिया था। इसी कारण कौए की कभी स्वाभाविक मौत नहीं होती। इसकी मृत्यु आकस्मिक ही होती है।
भगवान राम से जुड़ा है कौए का कनेक्शन
शास्त्रों में ये बात लिखी हुई है कि कौए का रूप देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने त्रेतायुग में लिया था। इसी युग में जब भगवान राम ने अवतार लिया तो जयंत ने कौए का रूप धारण किया और सीता जी के पैरों में चोंच मार दी थी। तब प्रभु श्रीराम ने जयंत की आंख फोड़ दी थी। जयंत ने अपने किए की माफी मांगी। तब भगवान राम ने वरदान दिया कि पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोजन में तुम्हें हिस्सा दिया जाएगा। तभी से पितृ पक्ष में कौए का बहुत महत्व माना जाता है।
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