Friday, November 15, 2024
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पौष पुत्रदा एकदाशी: संतान प्राप्ति के लिए आज ऐसे करें पूजा, जानें शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु के निमित्त व्रत कर, उनकी उपासना करने से व्रती को सुंदर और स्वस्थ संतान की प्राप्ति होती है | जानें पूजा विधि और व्रत कथा।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: January 06, 2020 7:07 IST
Paush putrada ekadashi- India TV Hindi
Paush putrada ekadashi

पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि और सोमवार का दिन है | एकादशी तिथि आज का पूरा दिन पूरी रात पार करके अगले दिन की भोर 4 बजकर 3 मिनट तक रहेगी | लिहाज़ा आज एकादशी व्रत किया जायेगा और पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी मानाने का विधान है | शास्त्रों में इस एकादशी का बड़ा ही महत्व है | पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु के निमित्त व्रत कर, उनकी उपासना करने से व्रती को सुंदर और स्वस्थ संतान की प्राप्ति होती है | अगर आपकी भी ऐसी कोई इच्छा है, अगर आप भी संतान सुख की प्राप्ति चाहते हैं या फिर आपकी पहले से संतान है और आप उसकी तरक्की सुनिश्चित करना चाहते हैं, तो आज के दिन आपको पुत्रदा एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए। साल 2020 की पौष पुत्रदा एकादशी 6 जनवरी को पड़ रही है। जानें पूजा विधि और व्रत कथा। 

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि

पुत्रदा एकादशी व्रत के लिए एकादशी से एक दिन पहले दशमी से ही नियमों का पालन शुरू कर देना चाहिए। ऐसा करने से व्रत सफल माना जाता है। दशमी के दिन सुर्यास्त से पहले तक खाना खा लें। सू्र्यास्त के बाद भोजन ना करें। दशमी के दिन नहाने के बाद बिना प्याज-लहसून से बना खाना खाएं। एकादशी के दिन स्नान करके व्रत का संकल्प लें। प्रसाद, धूप, दीप आदि से पूजा करें और पुत्रदा एकादशी व्रत कथा का पाठ करें। दिन भर निराहार व्रत रखें और रात में फलाहारी करें। द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराकर उसके बाद स्नान करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दें उसके बाद पारण करें।

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पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा
इस पौराणिक कथा के बारे में महाराज युधिष्ठर के पूछने में कृष्ण भगवान नें बताया कि इस व्रत की शुरुआत महीजित नामक राजा से हुई जो पुत्र न होने की जगह से परेशान था। महीजित एक प्रतापी राजा था। वह अपनी प्रजा को पुत्र के समान मानता था। राजा सभी अपराधियों को दंड देने में पीछे नही हटता था जिसके कारण उससे प्रजा बहुत ही खुश थी, लेकिन एक वजह के कारण महाराज हमेशा दुखी रहते थें। उनका दुख के कारण था उनके बाद उनके राज्य का कोई उत्तराधिकारी न होना। इसी कारण एक दिन राजा नें प्रजा से कहा कि मैने आज तक कोई बुरा काम नही किया न ही गलत तरीके से कभी धन कमाया फिर भी हमें एक पुत्र की प्राप्ति नही हुई। ऐसा क्यों है। इस बात में प्रजा बोली कि इस जन्म में तो आपने अच्छें कर्म किया शायद अगले जन्म में आपने गलत काम किया जिसकी वजह सें आपको इस जन्म में पुत्र की प्राप्ति नही हुई। इस बारें में जानने के लिए हमें वन में चल कर महर्षि लोमश से बात करनी चाहिए।

जब सभी वन पहुंच कर इस बारें में महर्षि से पुछा तो थोडी देर बाद वह बोले कि राजन पिछले जन्म में आप बहुत निर्धन व्यक्ति थे आपना गुजारा करने के लिए आप गलत काम करते थे। एक दिन दो दिन से भूखे आप एक सरोवर के किनारे पहुंचें तो वहां पर एक प्यासी गाय पानी पी रही थी लोकिन आप नें उसे हटा कर खुद ही पानी पीने लगे। जिसके कारण आप को पाप लगा। उस दिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी थी। इसी कारण आपको पुत्र का वियोग सहना पड़े।

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यह सब बाते सुन कर सभी श्रृषियों नें कहा कि अब इस पाप से छुटकारा पाने के लिए कोई उपाय बताइए। तब श्रृषि नें कहा कि सावन के महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत आप सभी रखें और यह संकल्प लें कि इसका फल महाराज को दे दें और रात में जागरण करों। इसके बाद इसका पारण दूसरे दिन करें। ऐसा करने से आपके पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति मिल जाएगी और आप सभी को अपना उत्तराधिकारी मिल सकता है। ऐसा करने से महाराज को पुत्र की प्राप्ति हुई।

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