आज पौष कृष्ण पक्ष की उदया तिथि प्रतिपदा और शुक्रवार का दिन है। प्रतिपदा तिथि आज सुबह 9 बजकर 57 मिनट तक ही रहेगी| आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार आज से पौष महीने की शुरुआत हो गयी है| सनातन विक्रम संवत के अनुसार पौष वर्ष का दसवां महीना होता है| भारतीय महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं| जिस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के नाम पर रखा गया है। पौष महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है, इसलिये इस महीने को पौष का महिना कहा जाता है। साथ ही पौष महीने के दौरान सूर्य की उपासना का भी बड़ा महत्व है| कहा जाता है कि पौष महीने में भगवान भास्कर ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। यही कारण है कि पौष महीने का भग नामक सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप माना गया है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है।
आदित्यपुराण के अनुसार पौष महीने के प्रत्येक रविवार को तांबे के बर्तन में जल, लाल चंदन और लाल फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। साथ ही सूर्य का मंत्र - ‘ऊँ सूर्याय नम:’का जाप करना चाहिए। अगर संभव हो तो रविवार के दिन सूर्यदेव के निमित्त व्रत भी करना चाहिए और तिल-चावल की खिचड़ी का दान करना चाहिए।
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जबकि व्रत का पारण शाम के समय किसी मीठे भोजन से करना चाहिए। इस व्रत में नमक का सेवन वर्जित है। पौष महीने के दौरान प्रत्येक रविवार को व्रत करने वाला व्यक्ति तेजस्वी बनता है। वहीं मान्यता यह भी है कि पौष महीने में मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिये क्योंकि उनका शुभ फल नहीं मिलता।इसका एक कारण यह भी है कि पौष महीने में सूर्य अधिकतर समय धनु राशि में रहते हैं।सूर्य की धनु संक्रांति से पौष महीने के पूरे शुक्ल पक्ष के दौरान सूर्य धनु संक्रांति में रहता है। इसलिए इस महीने को धनुर्मास भी कहते हैं। धनु संक्रांति से खरमास या मलमास भी लग जाता है। ज्योतिष शास्त्र में खरमास या मलमास को अच्छा नहीं माना जाता। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार आदि कराने की मनाही होती है। आपको यहां एक महत्वपूर्ण बात और बता दूं कि धनु राशि के स्वामी देवगुरु बृहस्पति हैं। अतः इस महीने में भले ही शुभ कार्य वर्जित हैं, लेकिन गुरु की उपासना के लिये, जैसे- आध्यात्मिक कार्यों जैसे हवन, पूजा-पाठ या किसी तीर्थ स्थल की यात्रा करना इस दौरान बड़ा ही शुभ फलदायी है। चंचल मन पर विजय पाने के लिये यह बहुत ही अच्छा समय है।
सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार पौष महीने में होने वाले मौसम परिवर्तन तथा ज्योतिषिय योगों के आधार पर आगामी वर्ष में होने वाली बारिश का संभावित अनुमान लगाया जाता है। मयूर चित्रम् के अनुसार-
कुद्वत्तासुत्रितिथिषु पौषे गर्भ: प्रजापते।
तदासुभिक्षमारोग्यं श्रावण्यां वारिवर्षणम्।।
अर्थात् पौष मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी,चतुर्दशी और अमावस्या को यदि आकाशीय गर्भ हो तो सुभिक्ष का योग बनाता है। यह योग श्रावण की पूर्णिमा को वर्षा करवाता है।
- महर्षि नारद के अनुसार यदि पौष महीने की सप्तमी को आधी रात के बाद वर्षा हो अथवा बादल गरजें तो उस क्षेत्र में वर्षा काल में बारिश नहीं होती।
- पौष महीने के पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के दिन यदि बादल दिखाई दें, गरजें या बरसें, इंद्रधनुष या बिजलियां चमकती दिखाई दें तो अच्छी वर्षा होती है।
- पौष शुक्ल पंचमी को यदि बर्फ गिरे तो बारिश के मौसम में अत्यधिक वर्षा होने की सम्भावना होती है।
मयूर चित्रम् के अनुसार-
शुक्लायां यदि सप्तम्यां घनैराच्छदितं नभ:।
तदास्थाच्छ्रावण मासि सप्तम्यां वृष्टिरूत्तमा:।।
इसके अनुसार यदि पौष शुक्ल सप्तमी को बादल हों तो श्रावण शुक्ल सप्तमी को अच्छी वर्षा का योग बनता है।