भाद्रपद शुक्ल पक्ष की उदया तिथि को एकादशी का व्रत रखा जाता है। एकादशी तिथि सुबह 8 बजकर 7 मिनट तक रहेगी। उसके बाद द्वादशी तिथि लग जायेगी। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी का व्रत करने का विधान है। वहीं मध्यप्रदेश में इसे दोल ग्यारस के नाम से जाना जाता है। कहा जाता हैं इस दिन भगवान श्री विष्णु शयन शैय्या पर सोते हुए करवट लेते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान श्री विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा की जाती है। इस एकादशी के विषय में ऐसा भी कहा गया है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्री विष्णु के वस्त्र धोएं थे, इसलिए इस एकादशी को 'जलझूलनी एकादशी' भी कहा जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से दूसरे लोगों के बीच आपका वर्चस्व कायम होगा और आपके सुख सौभाग्य में बढ़ोतरी होगी, साथ ही आपको अपने कार्यों में सफलता मिलेगी।
परिवर्तिनी एकादशी कब से कब तक
परिवर्तिनी एकादशी 16 सितंबर, गुरुवार को सुबह 9 बजकर 37 मिनट से सुरू होगी, जो 17 सितंबर की सुबह 8 बजकर 7 मिनट तक रहेगी।
परिवर्तिनी एकादशी पर दान
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी के दिन श्री विष्णु को पालकी में बिठाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत करने का और विधि-पूर्वक उनकी पूजा करने का विधान है, साथ ही इस दिन अलग-अलग तरह के सात अनाज (गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर ) को मिट्टी के बर्तन भरकर रखने और अगले दिन उन्हीं बर्तनों को अनाज समेत दान करने का विधान है।
परिवर्तिनी एकादशी की पूजा विधि
प्रातःकाल स्नान करके सूर्य देवता को जल अर्पित करें। इसके बाद पीले वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु और गणेश जी की पूजा करें। सबसे पहले घर या मंदिर पर भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल पीकर आत्मा शुद्धि करें। फिर रक्षासूत्र बांधे। इसके बाद शुद्ध घी से दीपक जलाकर शंख और घंटी बजाकर पूजन करें। व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद विधिपूर्वक प्रभु का पूजन करें और दिन भर उपवास करें।
सारी रात जागकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। इसी के साथ भगवान से किसी प्रकार हुआ गलती के लिए क्षमा भी मांगे। दूसरे दिन भगवान विष्णु का पूजन पहले की तरह करें। इसके बाद ब्राह्मणों को सम्मान सहित आमंत्रित करके भोजन कराएं और अपने अनुसार उन्हे दक्षिणा दें। इसके बाद सभी को प्रसाद देने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत-कथा
हिंदू पंचाग में एकादशी के व्रत का काफी महत्व है। महाभारत में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एकादशी के व्रत के महामात्य के बारे में बताते हुए, व्रत की कथा सुनाई थी और साथ ही एकादशी का व्रत रखने को भी कहा था। कथा के अनुसार त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था। असुर होने के बावजूद वे धर्म-कर्म में लीन रहता था और लोगों की काफी मदद और सेवा करता था। इस करके वो अपने तप और भक्ति भाव से बलि देवराज इंद्र के बराबर आ गया। जिसे देखकर देवराज इंद्र और अन्य देवता भी घबरा गए। उन्हें लगने लगा कि बलि कहीं स्वर्ग का राजा न बन जाए।
ऐसा होने से रोकने के लिए इंद्र ने भगवान विष्णु की शरण ली और अपनी चिंता उनके सम्मुख रखी। इतना ही नहीं, इंद्र ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। इंद्र की इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और राजा बलि के सम्मुख प्रकट हो गए। वामन रूप में भगवान विष्णु ने विराट रूप धारण कर एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। अब भगवान विष्णु के पास तीसरे पांव के लिए कुछ बचा ही नहीं। तब राजा बलि ने तीसरा पैर रखने के लिए अपना सिर आगे कर दिया। भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया। भगवान राजा बलि की इस भावना से बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया।