धर्म डेस्क: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पार्श्र्व, परिवर्तिनी या पद्मा एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास के श्रवण के बाद करवट बदलते है। इस बार परिवर्तिनी एकादशी 20 सिंतबर, गुरुवार को है।
इस दिन पूजन करने का बहुत अधिक महत्व है। इस दिन सच्चे मन से मांगी हुई सभी मनोकामनाएं जरुर पूर्ण हो जाती है। इस एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत रखता है। वह इस दिन प्रात: स्नान करके भगवान को स्मरण करते हुए विधि के साथ पूजा करें और उनकी आरती करनी चाहिए साथ ही उन्हें भोग लगाना चाहिए। (परिवर्तिनी एकादशी 2018: राशिनुसार करें ये उपाय होगी सुख-सौभाग्य की बढ़ोत्तरी )
इस दिन भगवान नारायण की पूजा का विशेष महत्व होता है। साथ ही ब्राह्मणों तथा गरीबों को भोजन या फिर दान देना चाहिए। यह व्रत बहुत ही फलदायी होता है। इस व्रत को करने से समस्त कामों में आपको सफलता मिलती है। जानिए इसकी पूजा-विधि, और कथा के बारे में।
परिवर्तिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारम्भ: 19 सितंबर को रात 10 बजकर 31 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 21 सितंबर सुबह 1 बजकर 30 मिनट तक
पारण का समय: 7 बजकर 52 मिनट से 8 बजकर 37 मिनट तक।
पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान का मनन करते हुए सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके बाद सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद पूजा स्थल में जाकर भगवान श्री कृष्ण की पूजा विधि-विधान से करें। इसके लिए अपने परिवार सहित पूजा घर में या मंदिर में भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल पीकर आत्मा शुद्धि करें।
रक्षा सूत्र बांधे। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। शंख और घंटी का पूजन अवश्य करें, क्योंकि यह भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद विधिपूर्वक प्रभु का पूजन करें और दिन भर उपवास करें।
सारी रात जागकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। इसी साथ भगवान से किसी प्रकार हुआ गलती के लिए क्षमा भी मांगे। अगले दूसरे दिन यानी की 14 सितंबर, बुधवार के दिन सुबह पहले की तरह करें।
इसके बाद ब्राह्मणों को ससम्मान आमंत्रित करके भोजन कराएं और अपने अनुसार उन्हे भेट और दक्षिणा दे। इसके बाद सभी को प्रसाद देने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।
व्रत-कथा
स्वर्ग की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह शिव भक्त था और प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा किया करता था। हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहां फूल लाया करता था। हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया, लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा।
पूजा में विलंब होती देख राजा कुबेर ने सेवकों को माली के न आने का कारण जानने के लिए भेजा। तब सेवकों ने पूरी बात आकर राजा को सच-सच बता दी। यह सुनकर कुबेर बहुत क्रोधित हुआ और उसने माली को श्राप दे दिया कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक (पृथ्वी) में जाकर कोढ़ी बनेगा।
कुबेर के श्राप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंर्तध्यान हो गई।
मृत्युलोक में बहुत समय तक हेम माली दु:ख भोगता रहा परंतु उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान रहा। एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले- तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से तुम्हारी यह हालत हो गई। हेम माली ने पूरी बात उन्हें बता दी।
उसकी व्यथा सुनकर ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। हेम माली ने विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह अपने पुराने स्वरूप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
व्रत के दिन व्रत के सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही साथ जहां तक हो सके व्रत के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए। भोजन में उसे नमक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए। इससे आपको हजारों सालों की तपस्या के बराबर फल मिलेगा।