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Papamochani Ekadashi 2019: 31 मार्च को पापमोचनी एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

Papamochani Ekadashi 2019: हिन्दू शास्त्रों में भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। एकादशी साल में 24 होती हैं। होली और चैत्र नवरात्रि के बीच जो एकादशी आती है उसे पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। जानें शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और पूजा विधि।

Written by: India TV Entertainment Desk
Published : March 29, 2019 18:30 IST
Papamochani Ekadashi 2019
Papamochani Ekadashi 2019

Papamochani Ekadashi 2019: हिन्दू शास्त्रों में भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। एकादशी साल में 24 होती हैं। होली और चैत्र नवरात्रि के बीच जो एकादशी आती है उसे पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी होती है। इस बार 31 मार्च, शनिवार को पापामोचनी एकादशी है।

पुराण ग्रंथों के अनुसार अगर कोई इंसान जाने-अनजाने में किए गये अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता है तो उसके लिये पापमोचनी एकादशी ही सबसे बेहतर दिन होता है। जानिए इसका शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा के बारें में। (मार्च माह के अंत में सूर्य कर रहा है रेवती नक्षत्र में प्रवेश, इन नाम के लोग रहें संभलकर)

पापमोचनी एकादशी शुभ मुहूर्त

पापमोचनी एकादशी 2019 व्रत का पारण: दोपहर 01:40 बजे से शाम 04:07 बजे (1 अप्रैल 2019, सोमवार)
हरि वासर समाप्त: दोपहर 12:44 बजे (1 अप्रैल 2019, सोमवार)
एकादशी आरंभ: 31 मार्च 2019, रविवार प्रातः 03:23 बजे।
एकादशी समाप्त: 1 अप्रैल 2019, सोमवार प्रातः 06:04 बजे। (Chaitra Navratri 2019: 6 अप्रैल से शुरू हो रहे है चैत्र नवरात्र, साथ ही जानिए कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त)

पापमोचनी एकादशी पूजा विधि
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा कर संकल्प लेकर व्रत रखा जाता है। इसके बाद कथा सुनकर व्रत खोला जाता है। इस दिन प्रात:काल सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा पर घी का दीपक जलाएं। जाने-अनजाने में आपसे जो भी पाप हुए हैं उनसे मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। इस दौरान ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप निरंतर करते रहें। एकादशी की रात्रि प्रभु भक्ति में जागरण करे, उनके भजन गाएं। साथ ही भगवान विष्णु की कथाओं का पाठ करें। द्वादशी के दिन उपयुक्त समय पर कथा सुनने के बाद व्रत खोलें।

एकादशी व्रत दो दिनों तक होता है लेकिन दूसरे दिन की एकादशी का व्रत केवल सन्यासियों, विधवाओं अथवा मोक्ष की कामना करने वाले श्रद्धालु ही रखते हैं। व्रत द्वाद्शी तिथि समाप्त होने से पहले खोल लेना चाहिए लेकिन हरि वासर में व्रत नहीं खोलना चाहिए और मध्याह्न में भी व्रत खोलने से बचना चाहिये। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो रही हो तो सूर्योदय के बाद ही पारण करने का विधान है।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
व्रत कथा के अनुसार चित्ररथ नामक वन में मेधावी ऋषि कठोर तप में लीन थे। उनके तप व पुण्यों के प्रभाव से देवराज इन्द्र चिंतित हो गए और उन्होंने ऋषि की तपस्या भंग करने हेतु मंजुघोषा नामक अप्सरा को पृथ्वी पर भेजा। तप में विलीन मेधावी ऋषि ने जब अप्सरा को देखा तो वह उस पर मन्त्रमुग्ध हो गए और अपनी तपस्या छोड़ कर मंजुघोषा के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत करने लगे।

कुछ वर्षो के पश्चात मंजुघोषा ने ऋषि से वापस स्वर्ग जाने की बात कही। तब ऋषि बोध हुआ कि वे शिव भक्ति के मार्ग से हट गए और उन्हें स्वयं पर ग्लानि होने लगी। इसका एकमात्र कारण अप्सरा को मानकर मेधावी ऋषि ने मंजुधोषा को पिशाचिनी होने का शाप दिया। इस बात से मंजुघोषा को बहुत दुःख हुआ और उसने ऋषि से शाप-मुक्ति के लिए प्रार्थना करी।

क्रोध शांत होने पर ऋषि ने मंजुघोषा को पापमोचिनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने के लिए कहा। चूँकि मेधावी ऋषि ने भी शिव भक्ति को बीच राह में छोड़कर पाप कर दिया था, उन्होंने भी अप्सरा के साथ इस व्रत को विधि-विधान से किया और अपने पाप से मुक्त हुए।

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