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पापमोचिनी एकादशी: मिलेगी हर पापों से मुक्ति, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

पापमोचनी एकादशी 19 मार्च को पड़ रही है। इस दिन श्रीहरि भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप की पूजा की जाती है।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: March 18, 2020 14:12 IST
Papmochani ekadashi 2020 - India TV Hindi
Papmochani ekadashi 2020 

चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचिना एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस बार ये एकादशी 19 मार्च, गुरुवार के दिन पड़ रही है। इस एकादशी को पुण्यदायी माना जाता है।  पुराण ग्रंथों के अनुसार अगर कोई इंसान जाने-अनजाने में किए गये अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता है तो उसके लिये पापमोचिनी एकादशी ही सबसे बेहतर दिन होता है। जानें पापमोचिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा। 

पापमोचिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार  19 मार्च को सुबह  4 बजकर 27 मिनट से शुरू होकर 20 मार्च सुबह 5 बजकर 59 मिनट तक एकादशी तिथि रहेगी।  वहीं पारण के समय की बात करें तो 20 मार्च दिन दोपहर 01 बजकर 41 मिनट से शाम को 04 बजकर 07 मिनट तक कर सकते है। 

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पापमोचिनी एकादशी की पूजा विधि
प्रात:काल सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा पर घी का दीपक जलाएं। जाने-अनजाने में आपसे जो भी पाप हुए हैं उनसे मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। इस दौरान 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप निरंतर करते रहें। एकादशी की रात्रि प्रभु भक्ति में जागरण करे, उनके भजन गाएं। भगवान विष्णु की कथाओं का पाठ करें। द्वादशी के दिन उपयुक्त समय पर कथा सुनने के बाद व्रत खोलें।

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एकादशी व्रत दो दिनों तक होता है लेकिन दूसरे दिन की एकादशी का व्रत केवल सन्यासियों, विधवाओं अथवा मोक्ष की कामना करने वाले श्रद्धालु ही रखते हैं। व्रत द्वाद्शी तिथि समाप्त होने से पहले खोल लेना चाहिए लेकिन हरि वासर में व्रत नहीं खोलना चाहिए और मध्याह्न में भी व्रत खोलने से बचना चाहिये। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो रही हो तो सूर्योदय के बाद ही पारण करने का विधान है।

पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा
व्रत कथा के अनुसार चित्ररथ नामक वन में मेधावी ऋषि कठोर तप में लीन थे। उनके तप व पुण्यों के प्रभाव से देवराज इन्द्र चिंतित हो गए और उन्होंने ऋषि की तपस्या भंग करने हेतु मंजुघोषा नामक अप्सरा को पृथ्वी पर भेजा। तप में विलीन मेधावी ऋषि ने जब अप्सरा को देखा तो वह उस पर मन्त्रमुग्ध हो गए और अपनी तपस्या छोड़ कर मंजुघोषा के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत करने लगे।

कुछ वर्षो के पश्चात मंजुघोषा ने ऋषि से वापस स्वर्ग जाने की बात कही। तब ऋषि बोध हुआ कि वे शिव भक्ति के मार्ग से हट गए और उन्हें स्वयं पर ग्लानि होने लगी। इसका एकमात्र कारण अप्सरा को मानकर मेधावी ऋषि ने मंजुधोषा को पिशाचिनी होने का शाप दिया। इस बात से मंजुघोषा को बहुत दुःख हुआ और उसने ऋषि से शाप-मुक्ति के लिए प्रार्थना करी।

क्रोध शांत होने पर ऋषि ने मंजुघोषा को पापमोचिनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने के लिए कहा। चूंकि मेधावी ऋषि ने भी शिव भक्ति को बीच राह में छोड़कर पाप कर दिया था, उन्होंने भी अप्सरा के साथ इस व्रत को विधि-विधान से किया और अपने पाप से मुक्त हुए।

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