धर्म डेस्क: होली और चैत्र नवरात्र के बीच जो एकादशी आती है उसे पापमोचिनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को सभी पापों को नाश करने वाली एकादशी बोला जाता है। इस बार ये एकादशी 24 मार्च, शुक्रवार को पड़ रही है।
ये भी पढ़े
- पापमोचिनी एकादशी 24 को: इस शुभ मुहूर्त में ऐसे करें श्री विष्णु की पूजा
- गुरुड़ पुराण: भूलकर भी इन 3 कामों को न छोड़े अधूरा
- हो ऐसी घटनाएं, तो समझ लें होने वाला है धन का भारी नुकसान
इस एकादशी के बारें में पुराण ग्रंथों में कहा गया है कि यदि मनुष्य जाने-अनजाने में किए गये अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता है तो उसके लिये पापमोचिनी एकादशी ही सबसे बेहतर दिन होता है। जानिए इस एकादशी की व्रत कथा के बारें में।
पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा
व्रत कथा के अनुसार चित्ररथ नामक वन में मेधावी ऋषि कठोर तप में लीन थे। उनके तप व पुण्यों के प्रभाव से देवराज इन्द्र चिंतित हो गए और उन्होंने ऋषि की तपस्या भंग करने हेतु मंजुघोषा नामक अप्सरा को पृथ्वी पर भेजा। तप में विलीन मेधावी ऋषि ने जब अप्सरा को देखा तो वह उस पर मन्त्रमुग्ध हो गए और अपनी तपस्या छोड़ कर मंजुघोषा के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत करने लगे।
कुछ वर्षो के पश्चात मंजुघोषा ने ऋषि से वापस स्वर्ग जाने की बात कही। तब ऋषि बोध हुआ कि वे शिव भक्ति के मार्ग से हट गए और उन्हें स्वयं पर ग्लानि होने लगी। इसका एकमात्र कारण अप्सरा को मानकर मेधावी ऋषि ने मंजुधोषा को पिशाचिनी होने का शाप दिया। इस बात से मंजुघोषा को बहुत दुःख हुआ और उसने ऋषि से शाप-मुक्ति के लिए प्रार्थना करी।
क्रोध शांत होने पर ऋषि ने मंजुघोषा को पापमोचिनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने के लिए कहा। चूँकि मेधावी ऋषि ने भी शिव भक्ति को बीच राह में छोड़कर पाप कर दिया था, उन्होंने भी अप्सरा के साथ इस व्रत को विधि-विधान से किया और अपने पाप से मुक्त हुए।