जनश्रुतियों के मुताबिक, मध्यकाल में वैशाली में महामारी फैली थी, जिस कारण बड़ी संख्या में लोगों की जान गई थी। इसी दौरान बड़ी संख्या में यहां चमगादड़ आए और फिर ये यहीं के होकर रह गए। इसके बाद से यहां किसी प्रकार की महामारी कभी नहीं आई।
स्थानीय आऱ एन. कॉलेज के प्रोफेसर एस़ पी़ श्रीवास्तव का कहना है कि चमगादड़ों के शरीर से जो गंध निकलती है, वह उन विषाणुओं को नष्ट कर देती है जो मनुष्य के शरीर के लिए नुकसानदेह माने जाते हैं। यहां के ग्रामीण इस बात से खफा हैं कि चमगादड़ों को देखने के लिए यहां सैकड़ों पर्यटक प्रतिदिन आते हैं, लेकिन सरकार ने उनकी सुविधा के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।
सरपंच निराला बताते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में चमगादड़ों का वास न केवल अभूतपूर्व है, बल्कि मनमोहक भी है, लेकिन यहां साफ -सफाई और सौंदर्यीकरण की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र को पर्यटनस्थल के रूप में विकसित कराने के लिए पिछले 15 वर्षो से प्रयास किया जा रहा है, मगर अब तक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि पूर्व पर्यटन मंत्री सुनील कुमार पिंटू और कला संस्कृति मंत्री विनय बिहारी ने इस क्षेत्र का दौरा भी किया था।
निराला को आशा है कि वर्तमान समय में राजापाकर के विधायक शिवचंद्र राम कला एवं संस्कृति मंत्री बनाए गए हैं। शायद इस क्षेत्र का कायाकल्प हो जाए।