ओणम केरल के प्रमुख त्योहारों में एक माना जाता है। यह त्योहार 22 अगस्त से शुरू हुआ था जोकि 2 सितंबर तक मनाया जााएगा। यह त्योहार पूरे 10 दिन तक मनाया जाता है। इस बार कोरोना वायरस के कारण ओणम के त्योहार की चमक फीकी पड़ गई हैं। यह त्योहार बहुत ही खास होता है। इस दिन मंदिरों में पूजा-अर्चना नहीं की जाती है बल्कि घर पर रहकर लोग पूजा करते हैं।
इस पर्व को मनाने के पीछे एक कथा है। इसके अनुसार केरल में महाबली नाम का एक असुर राजा था। जिसके आदर के लिए यह ओणम पर्व मनाते हैं। इसके साथ ही लोग नई फसल की उपज के लिए भी इस फर्व को मनाते हैं। इस पर्व के दौरान सर्प नौका दौड़ के साथ कथकली नृत्य का आयोजन किया जाती है।
इस तरह मनाया जाता है 10 दिन का पर्व
केरल में यह ओणम का त्योहार पूरे 10 दिन मनाया जाता है। इस दिन घरों में ही पूजा की जाती है। घर के अंदर फूल-ग्रह बनाया जाता है। इसके लिए एक साफ कमरे में सर्कल में फूल सजाए जाते हैं। जिसे पूरे 8 दिन रोजाना सजाया जाता है। नौवें दिन के घर के अंदर भगवान विष्णु की मूति रखी जाती हैं। जिसकी विधि-विधान से पूजा अर्चना करके घर में मौजूद लोग गीत गाते हैं। इसके साथ ही रात के समय श्रावण देवता और गणपति की पूजा की जाती हैं । इसके साथ ही 10वें मूर्ति विसर्जन किया जाता है।
ओणम पर्व में बनते है कई लजीज व्यंजन
आपको बता दें कि ओणम पर्व में कदली के पत्तों में ही खाना परोसा जाता है। इस दिन केले के चिप्स बनाए जाते हैं। इसके अलावा खीर बनाना शुभ माना जाता है। इस दिन पूरे 18 तरह के दूध से पकवान बनाए जाते हैं।
ओणम मनाने का कारण
इस दिन को मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाए प्रचलित है। इनमें से यह एक मानी जाती हैं। कथा के अनुसार जब भगवान परशुराम ने सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से जीत कर ब्राह्मणों को दान कर दी थी। तब उनके पास रहने के लिए कोई भी स्थान नहीं रहा, तब उन्होंने सह्याद्री पर्वत की गुफ़ा में बैठ कर जल देवता वरुण की तपस्या की। वरुण देवता ने तपस्या से खुश होकर परशुराम जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम अपना फरसा समुद्र में फेंको। जहां तक तुम्हारा फरसा समुद्र में जाकर गिरेगा, वहीं तक समुद्र का जल सूखकर पृथ्वी बन जाएगी। वह सब पृथ्वी तुम्हारी ही होगी और उसका नाम परशु क्षेत्र होगा। परशुराम जी ने वैसा ही किया और जो भूमि उनको समुद्र में मिली, उसी को वर्तमान को 'केरल या मलयालम' कहते हैं। परशुराम जी ने समुद्र से भूमि प्राप्त करके वहां पर एक विष्णु भगवान का मन्दिर बनवाया था। वही मन्दिर अब भी 'तिरूक्ककर अप्पण' के नाम से प्रसिद्ध है। जिस दिन परशुराम जी ने मन्दिर में मूर्ति स्थापित की थी, उस दिन श्रावण शुक्ल की त्रियोदशी थी। इसलिए उस दिन 'ओणम' का त्योहार मनाया जाता है।