ऐसें करें घट स्थापना
घट स्थापना के लिए मिट्टी या अपने अनुसार कलश लेकर उसमें जल भर लें। फिर इसके ऊपर एक लाल रंग को वस्त्रध्चुनरी से लपेटकर आम के पांच पत्तो के साथ रखें। कलश के ऊपर रोली से ऊं और स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं।
कलश में सप्तमृतिका यानि की सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, भेट पांच प्रकार के पल्लव से कलश को सुशोभित किया जाता है। इसके बाद इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोए जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है और इससे सभी देवी-देवता की पूजा होती है। इसके बाद इस कलश को पूर्व दिशा की ओर किसी सुरक्षित जगह में इस मंत्र के साथ स्थापित कर दें।
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
इसके बाद सबसे पहले भगवान विष्णु का नाम लेकर अपने ऊपर जल छिड़के और फिर आचमन आदि करके ऊं भूम्यै नम: कहते हुए घरती को स्पर्श करें। इसके बाद गणेश को याद करके दक्षिण-पूर्व की दिशा की ओर घी का दीपक जलातें हुए इस मंत्र को पढ़े-
ऊं दीपो ज्योति: परब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्नद:। दीपो हरतु मे पापं पूजा दीपनमोस्तु ते।
फिर देवी दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल पर बीच में स्थापित की जाती है और उनके दोनों तरफ यानी दाई ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की प्रतिमा रहती है और बाई ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती और जया नामक योगिनी रहती है तथा भगवान भोले नाथ की भी पूजा की जाती है। प्रथम पूजन के दिन “शैलपुत्री” के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती है
कलश स्थापना के पश्चात देवी दुर्गा जिन्होंने दुर्गम नामक प्रलयंकारी असुर का संहार कर अपने भक्तों को उसके त्रास से यानी पीड़ा से मुक्त कराया उस देवी का आह्वान करें। साथ ही रोज शाम कोदेवी की आरती करनी चाहिए।
ऐसें करें अखंड ज्योति प्रज्जवलित
नवरात्र के समय नौ दिन अखंड ज्योति प्रज्जवलित की जाती है। लेकिन आप चाहे तो सिर्फ पूजा के समय दीप जला सकते है।