धर्म डेस्क: नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन मां दुर्गा के मंदिरों को सजाया जाता है और भक्ती की भीड़ लगी रहती है। नवदुर्गा का पहला रूप शैलपुत्री का है। शिव की नगरी काशी विश्वनाथ यानी वाराणसी के अलईपुरा इलाके में इनका मंदिर बना है।
यहां आदि शक्ति शैलपुत्री का मंदिर है। हमारे पुराणों में कहा गया है मां दुर्गा का रूप शैलपुत्री हिमालय की बेटी थी जिन्हें सती भी कहा जाता है जिनका एक रूप पार्वती का भी है। शैलपुत्री का विवाह शिव से हुआ था। और यही कारण है कि इनका मंदिर शिव की नगरी वाराणसी में है।
यहां आने वाले लोगों में महिलाएं ज्यादा रहती है जो अपने सुहाग की लंबी उम्र की मनोकामना माता के चरणों में आगे करती है। लोग माता को लाल फूल, लाल चूनरी और मिष्ठान चढ़ाते है। माता के इस रूप के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते है।
कहा जाता है कि वाराणसी में माता का ये मंदिर इतना शक्तिशाली है कि अपने भक्तों की हर प्रार्थना माता सुनती है। माता शैलपुत्री भव्य है इनका वाहन वृषभ है। इन्होंने दाये हाथ में त्रिशुल धारण कर रखा है और बाये हाथ में कमल सुशोभित है। मां सती अगले जन्म में शैल राज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलायी। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शिव से हुआ और शिवजी की अर्द्धांगिनी बनी। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।
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