प्रतिवर्ष आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है, लिहाजा शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 7 अक्टूबर से हो रही है। इस दिन से लेकर पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग नौ शक्ति स्वरूपों की पूजा की जाएगी। दरअसल वर्ष में चार बार पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन माह में नवरात्रि आते हैं। चैत्र और आश्विन में आने वाले नवरात्रि प्रमुख होते हैं, जबकि अन्य दो महीने पौष और आषाढ़ में आने वाले नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के रूप में मनाये जाते हैं चूंकि आश्विन माह से शरद ऋतु की शुरुआत होने लगती है, इसलिए आश्विन माह के इन नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
ये नौ दिवसीय शारदीय नवरात्रि 7 अक्टूबर से शुरू होकर 14 अक्टूबर तक चलेंगे। किसी भी नवरात्रि के पहले दिन देवी मां के निमित्त कलश स्थापना की जाती है। इसलिए गुरुवार को कलश स्थापना का सही समय क्या होगा, उसकी सही विधि क्या होगी और नवरात्रि के पहले दिन देवी मां के किस स्वरूप की उपासना की जायेगी। जानिए इन सभी चीजों के बारे में आचार्य इंदु प्रकाश से।
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नवरात्रि के पहले दिन बन रहे हैं ये योग
नवरात्रि के दिन देर रात 1 बजकर 40 मिनट तक वैधृति योग रहेगा। वैधृति योग स्थिर कार्यों हेतु ठीक है परंतु यदि कोई भाग-दौड़ वाला कार्य अथवा यात्रा आदि करनी हो तो इस योग में नहीं करनी चाहिए। इसके साथ ही रात 9 बजकर 13 मिनट तक चित्रा नक्षत्र रहेगा।
नवरात्रि कलश स्थापना मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त :- सुबह 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार, कलश स्थापना का सही समय सुबह 06 बजकर 17 मिनट से सुबह 07 बजकर 07 मिनट तक ही है।
कलश स्थापना विधि
सबसे पहले घर के ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा के हिस्से की अच्छे से साफ-सफाई करके वहां पर जल छिड़कर साफ मिट्टी या बालू बिछानी चाहिए। फिर उस साफ मिट्टी या बालू पर जौ की परत बिछानी चाहिए। उसके ऊपर पुनः साफ मिट्टी या बालू की परत बिछानी चाहिए और उसका जलावशोषण करना चाहिए। जलावशोषण का मतलब है कि उस मिट्टी की परत के ऊपर जल छिड़कना चाहिए । अब उसके ऊपर मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करनी चाहिए। कलश को अच्छ से साफ, शुद्ध जल से भरना चाहिए और उस कलश में एक सिक्का डालना चाहिए। अगर संभव हो तो कलश के जल में पवित्र नदियों का जल भी जरूर मिलाना चाहिए। इसके बाद कलश के मुख पर अपना दाहिना हाथ रखकर इस मंत्र को बोलना चाहिए।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥
ये मंत्र पढ़ें और अगर मंत्र न बोल पाएं तो या ध्यान न रहे तो बिना मंत्र के ही गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु और कावेरी, पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए उन नदियों के जल का आह्वाहन उस कलश में करना चाहिए और ऐसा भाव करना चाहिए कि सभी नदियों का जल उस कलश में आ जाए। पवित्र नदियों के साथ ही वरूण देवता का भी आह्वाहन करना चाहिए, ताकि वो उस कलश में अपना स्थान ग्रहण कर लें।
इस प्रकार आह्वाहन आदि के बाद कलश के मुख पर कलावा बांधिये और एक मिट्टी की कटोरी से कलश को ढक दीजिये। अब ऊपर ढकी गयी उस कटोरी में जौ भरिए। अगर जौ न हो तो चावल भी भर सकते हैं। इसके बाद एक जटा वाला नारियल लेकर उसे लाल कपड़े में लपेटकर ऊपर कलावे से बांध दें। फिर उस बंधे हुए नारियल को जौ या चावल से भरी हुई कटोरी के ऊपर स्थापित कर दीजिए।
कुछ लोग कलश के ऊपर रखी गयी कटोरी में ही घी का दीपक जला लेते हैं। ऐसा करना उचित नहीं है। कलश का स्थान पूजा के उत्तर-पूर्व कोने में होता है जबकि दीपक का स्थान दक्षिण-पूर्व कोने में होता है। लिहाजा कलश के ऊपर दीपक नहीं जलाना चाहिए। दूसरी बात ये है कि कुछ लोग कलश के ऊपर रखी कटोरी में चावल भरकर उसके ऊपर शंख स्थापित करते हैं। इसमें कोई परेशानी नहीं है, आप ऐसा कर सकते हैं। बशर्ते कि शंख दक्षिणावर्त होना चाहिए और उसका मुंह ऊपर की ओर रखना चाहिए और चोंच अपनी ओर करके रखनी चाहिए। इस सारी कार्यवाही में एक चीज़ का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि ये सब करते समय नवार्ण मंत्र अवश्य पढ़ना चाहिए। नवार्ण मंत्र है- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय
विच्चे।'
देखिये एक बार फिर से नवार्ण मंत्र के साथ सारी कार्यवाही समझ लीजिए -
सबसे पहले उत्तर-पूर्व कोने की सफाई करें और जल छिड़कते समय कहें- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।”
फिर कोने में मिट्टी या बालू बिछायी और 5 बार मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसके ऊपर जौ बिछाया और मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसके ऊपर फिर मिट्टी या बालू बिछायी और मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसके ऊपर कलश रखा और मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
कलश में जल भरा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसमें सिक्का डाला- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
वरूण देव का आह्वाहन किया- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
कलश के मुख पर कलावा बांधा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
कलश के ऊपर कटोरी रखी- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसमें चावल या जौ भरा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
नारियल पर कपड़ा लपेटा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसे कलावे से बांधा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उस नारियल को जौ या चावल से भरी कटोरी पर रखा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
इस प्रकार सभी चीजें चामुण्डा मंत्र से ही, यानि नवार्ण मंत्र से अभिपूत की जानी है।
ऐसे करें ध्वजारोपण
नवरात्रि के पहले दिन ध्वजारोपण की भी परंपरा है। अपने घर के दक्षिण-पश्चिम यानि अग्नि कोण में पांच हाथ ऊंचे डंडे में, सवा दो हाथ की लाल रंग की ध्वजा लगानी चाहिए। ध्वजा लगाते समय सोम, दिगंबर कुमार और रूरू भैरव देवताओं की उपासना करनी चाहिए और उनसे अपनी ध्वजा की रक्षा करने की प्रार्थना करनी चाहिए । साथ ही अपने घर की सुख-समृद्धि के लिये भी प्रार्थना करनी चाहिए । ये ध्वजा जीत का प्रतीक मानी जाती है। इसे घर पर लगाने से केतु के शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं और साल भर घर का वास्तु भी अच्छा रहता है।