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Navratri 2019: 29 सितंबर से नवरात्र शुरू, जानें कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

सितंबर को घट स्थापना की जाएगी। जानें आचार्य इंदु प्रकाश से घट स्थापना का सही समय और सही विधि।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : September 27, 2019 13:41 IST
navratri 2019
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शारदीय नवरात्र की शुरुआत 29 सितंबर से हो रही है। इस बार पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग नौ शक्ति स्वरूपों की पूजा की जायेगी। दरअसल वर्ष में चार बार पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन माह में नवरात्र आते हैं। चैत्र और आश्विन में आने वाले नवरात्र प्रमुख होते हैं, जबकि अन्य दो महीने पौष औरआषाढ़ में आने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्र के रूप में मनाये जाते हैं। चूंकि आश्विन माह से शरद ऋतु की शुरुआत होने लगती है, इसलिए आश्विन माह के इन नवरात्र को शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है।

शारदीय नवरात्र 29 सितम्बर से शुरू होकर 7 अक्टूबर तक चलेंगे। नवरात्र के पहले दिन देवी मां के निमित्त घट स्थापना या कलश स्थापना की जाती है। 29 सितंबर को घट स्थापना की जाएगी। जानें आचार्य इंदु प्रकाश से घट स्थापना का सही समय और सही विधि।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

नवरात्र में कलश स्थापना के लिए शुभ, अमृत, लाभ, चक्र की चौघड़िया द्विस्वभावी लग्न शुभ मानी जाती है |

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कन्या लग्न: सुबह 05 बजकर 24 मिनट से 07 बजकर 14 मिनट तक
दूसरी द्विस्वभावी: लग्न धनु दोपहर 12 बजकर 19 मिनट से 02 बजकर 32 मिनट तक
तीसरी द्विस्वभावी: लग्न शाम 05 बजकर 32 मिनट से 06 बजकर 58 मिनट तक रहेगी |

चर चौघड़िया: सुबह 07 बजकर 42 मिनट से लेकर 09 बजकर 12 मिनट तक
लाभ चौघड़िया: सुबह 09 बजकर 12 मिनट से लेकर 10 बजकर 42 मिनट तक
अमृत चौघड़िया: सुबह 10 बजकर 42 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक
शुभ चौघड़िया: दोपहर 01 बजकर 42 मिनट से दोपहर बाद 3 बजकर 11 मिनट तक
 
कलश स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त

सुबह 07 बजकर 40 मिनट तक द्विस्वभावी लग्न कन्या रहेगी | उस समय कलश स्थापना 09 बजकर 12 मिनट तक चर की चौघड़िया में अथवा 09 बजकर 12 मिनट से 10 बजकर 42 मिनट तक लाभ की चौघड़िया या 10 बजकर 42 मिनट से 12 बजकर 12 मिनट तक अमृत की चौघड़िया में कलश स्थापना श्रेष्कर रहेगी | दूसरी द्विस्वभावी लग्न धनु 12 बजकर 19 मिनट से दोपहर 02 बजकर 23 मिनट तक रहेगी, तो इनका कॉमन समय दोपहर 01 बजकर 42 मिनट से 02 बजकर 23 मिनट तक रहेगा | ये समय भी बहुत शुभ है |

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अभिजित मुहूर्त
अस्तु सुबह 07 बजकर 40 मिनट से कलश स्थापना शुरू करके दोपहर 12 बजकर 12 तक कभी भी किया जा सकता है | दोपहर में 11 बजकर 50 मिनट से 12 बजकर 12 मिनट के बीच अभिजित मुहूर्त भी रहेगा | ये मुहूर्त भी बेहद शानदार होता है |

क्यों मनाया जाता है नवरात्र का त्योहार?
कहते हैं भगवान श्री राम ने लंकापति रावण पर विजय पाने से पहले देवी मां की आराधना की थी, जिसके फलस्वरूप आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान श्री राम ने रावण पर विजय हासिल की थी। इसीलिए आज भी नवरात्र के नौ दिनों के दौरान रामलीला का आयोजन होता है और नवरात्र के सम्पूर्ण होने के अगले दिन विजयदशमी, यानी दशहरे का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें रावण के प्रतीक स्वरूप पुतले को जलाया जाता है और श्री राम की विजय का उत्सव मनाया जाता है । दशहरे का त्योहार जहां एक ओर अहंकार पर सत्य की विजय के अलावा इस बात का भी द्घोतक है कि इस देश के ब्राह्मण कभी जातिद्वेषी नहीं थे यदि ब्राह्मण जातिद्वेषी होते तो आज राम की नहीं रावण की पूजा होती, क्योंकि रावण ब्राह्मण थे | इस दिन सभी ब्राह्मण श्रीराम की पूजा करते है | वास्तव में इस देश के ब्राह्मण कभी जतिद्वेषी थे ही नहीं, ये तो मध्य काल में हिन्दू समाज को तोड़ने के लिये ब्राह्मणों को दोषी होने का झूठ कुप्रचार किया गया |

कलश स्थापना की सम्पूर्ण विधि
इस दिन सबसे पहले घर के ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व दिशा के हिस्से की अच्छे से साफ- सफाई करके, वहां पर जल छिड़कर साफ मिट्टी या बालू बिछानी चाहिए। फिर उस साफ मिट्टी
या बालू पर जौ की परत बिछानी चाहिए। उसके ऊपर पुनः साफ मिट्टी या बालू की परत बिछानी चाहिए और उसका जलावशोषण करना चाहिए। जलावशोषण का मतलब है कि उस मिट्टी की परत के ऊपर जल छिड़कना चाहिए। अब उसके ऊपर मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करनी चाहिए। कलश को अच्छ से साफ, शुद्ध जल से भरना चाहिए और उस कलश में एक सिक्का डालना चाहिए। अगर संभव हो तो कलश के जल में पवित्र नदियों का जल भी जरूर मिलाना चाहिए।

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इसके बाद कलश के मुख पर अपना दाहिना हाथ रखकर
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

ये मंत्र पढ़ें और अगर मंत्र न बोल पायें तो या ध्यान न रहे तो बिना मंत्र के ही गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु और कावेरी, पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए उन नदियों के जल का आह्वाहन उस कलश में करना चाहिए और ऐसा भाव करना चाहिए कि सभी नदियों का जल उस कलश में आ जाये। पवित्र नदियों के साथ ही वरूण देवता का भी आह्वाहन करना चाहिए, ताकि वो उस कलश में अपना स्थान ग्रहण कर लें। इस प्रकार आह्वाहन आदि के बाद कलश के मुख पर कलावा बांधिये और एक ढक्कन या परई या दियाली या मिट्टी की कटोरी, जो भी आप उसे अपनी भाषा में कहते हों और जो भी आपके पास उपलब्ध हो, उससे कलश को ढक दीजिये। अब ऊपर ढकी गयी उस कटोरी में जौ भरिये। यदि जौ न हो तो चावल भी भर सकते हैं। इसके बाद एक जटा वाला नारियल लेकर उसे लालकपड़े में लपेटकर, ऊपर कलावे से बांध दें। फिर उस बंधे हुए नारियल को जौ या चावल से भरी हुई कटोरी के ऊपर स्थापित कर दीजिये।

ध्यान रखें ये 2 बातें
कई लोग होते है कि कही भी दीपक जला लेते हैं। ऐसा करना उचित नहीं है। कलश का स्थान पूजा के उत्तर-पूर्व कोने में होता है जबकि दीपक का स्थान दक्षिण-पूर्व कोने में होता है। अतः कलश के ऊपर दीपक नहीं जलाना चाहिए। दूसरी बात ये है कि कुछ लोग कलश के ऊपर रखी कटोरी में चावल भरकर उसके ऊपर शंख स्थापित करते हैं। इसमें कोई परेशानी नहीं है, आप ऐसा कर सकते हैं। बशर्ते कि शंख दक्षिणावर्त होना चाहिए और उसका मुंह ऊपर की ओर रखना चाहिए और चोंच अपनी ओर करके रखनी चाहिए।

मंत्र अवश्य पढ़ना चाहिए। नवार्ण मंत्र है- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।"
देखिये एक बार फिर से नवार्ण मंत्र के साथ सारी कार्यवाही समझ लीजिये -
सबसे पहले उत्तर-पूर्व कोने की सफाई करें और जल छिड़कते समय कहें- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।"
फिर कोने में मिट्टी या बालू बिछायी और 5 बार मंत्र पढ़ा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसके ऊपर जौ बिछाया और मंत्र पढ़ा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसके ऊपर फिर मिट्टी या बालू बिछायी और मंत्र पढ़ा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसके ऊपर कलश रखा और मंत्र पढ़ा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
कलश में जल भरा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसमें सिक्का डाला- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
वरूण देव का आह्वाहन किया- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
कलश के मुख पर कलावा बांधा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
कलश के ऊपर कटोरी रखी- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसमें चावल या जौ भरा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
नारियल पर कपड़ा लपेटा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसे कलावे से बांधा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उस नारियल को जौ या चावल से भरी कटोरी पर रखा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे" इस प्रकार सभी चीजें चामुण्डा मंत्र से ही, यानी नवार्ण मंत्र से अभिपूत की जानी है।

ऐसे करें ध्वजारोपण
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार नवरात्र के पहले दिन ध्वजारोपण की भी परंपरा है। इस दिन अपने घर के दक्षिण-पूर्व कोने, यानि अग्नि कोण में पांच हाथ ऊंचे डंडे में, सवा दो हाथ की लाल रंग की ध्वजा लगानी चाहिए । ध्वजा लगाते समय सोम, दिगंबर कुमार और रूरू भैरव देवताओं कीउपासना करनी चाहिए और उनसे अपनी ध्वजा की रक्षा करने की प्रार्थना करनी चाहिए । साथ ही अपने घर की सुख-समृद्धि के लिये भी प्रार्थना करनी चाहिए । ये ध्वजा जीत की प्रतीक मानी जाती है। इसे घर पर लगाने से केतु के शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं और साल भर घर का वास्तु भी अच्छा रहता है।

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