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Navratri 2018: नवरात्रि पर इस विधि से करें कलश स्थापना, साथ ही जानें मां शैलपुत्री की पूजा विधि

10 अक्टूबर को नवरात्र का पहला दिन है और किसी भी नवरात्र के पहले दिन देवी मां के निमित्त घट स्थापना या कलश स्थापना की जाती है। अतः इस दिन घट स्थापना का सही समय क्या होगा, उसकी सही विधि क्या होगी और नवरात्र के पहले दिन देवी मां के किस स्वरूप की उपासना की जायेगी। जानिए आचार्य इंदु प्रकाश से।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: October 09, 2018 17:23 IST
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Navratri

धर्म डेस्क: आज आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि और बुधवार का दिन है। प्रतिवर्ष आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है। अतः आज से शारदीय नवरात्र की शुरुआत है। 10 अक्टूबर से लेकर पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग नौ शक्ति स्वरूपों की पूजा की जायेगी।

दरअसल वर्ष में चार बार पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन माह में नवरात्र आते हैं। चैत्र और आश्विन में आने वाले नवरात्र प्रमुख होते हैं, जबकि अन्य दो महीने पौष और आषाढ़ में आने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्र के रूप में मनाये जाते हैं। चूंकि आश्विन माह से शरद ऋतु की शुरुआत होने लगती है, इसलिए आश्विन माह के इन नवरात्र को शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है। ये नौ दिवसीय शारदीय नवरात्र आज से शुरू होकर 19 अक्टूबर तक चलेंगे। (Navratri 2018: जानें कब से शुरु हो रहे है शारदीय नवरात्र, इस शुभ मुहूर्त में करें कलश स्थापना )

10 अक्टूबर को नवरात्र का पहला दिन है और किसी भी नवरात्र के पहले दिन देवी मां के निमित्त घट स्थापना या कलश स्थापना की जाती है। अतः इस दिन घट स्थापना का सही समय क्या होगा, उसकी सही विधि क्या होगी और नवरात्र के पहले दिन देवी मां के किस स्वरूप की उपासना की जायेगी। जानिए आचार्य इंदु प्रकाश से।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार  10 अक्टूबर के दिन कलश स्थापना का सबसे अच्छा मुहूर्त शाम 04:29 से 05:53 तक रहेगा। दूसरा अच्छा मुहूर्त दोपहर 03:02 से शाम 04:29 तक रहेगा। वहीं अभिजीत मुहूर्त का लाभ उठाने की इच्छा रखने वाले लोग दोपहर पहले 11:58 से दोपहर 12:08 के बीच कलश स्थापना करके पाठ की शुरुआत भी दोपहर 12:08 के पहले ही कर लें। नवरात्र के बाकी दिनों से जुड़ी जानकारियां भी हम आपको इन नौ दिनों के दौरान देते रहेंगे। (अक्टूबर माह में पड़ेंगे नवरात्रि, दशहरा और करवा चौथ जैसे बड़े त्योहार, देखें पूरी लिस्ट )

कलश स्थापना की सम्पूर्ण विधि
इस दिन सबसे पहले घर के ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व दिशा के हिस्से की अच्छे से साफ- सफाई करके, वहां पर जल छिड़कर साफ मिट्टी या बालू बिछानी चाहिए। फिर उस साफ मिट्टी या बालू पर जौ की परत बिछानी चाहिए। उसके ऊपर पुनः साफ मिट्टी या बालू की परत बिछानी चाहिए और उसका जलावशोषण करना चाहिए। जलावशोषण का मतलब है कि उस मिट्टी की परत के ऊपर जल छिड़कना चाहिए। अब उसके ऊपर मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करनी चाहिए।

कलश को अच्छ से साफ, शुद्ध जल से भरना चाहिए और उस कलश में एक सिक्का डालना चाहिए। अगर संभव हो तो कलश के जल में पवित्र नदियों का जल भी जरूर मिलाना चाहिए। इसके बाद कलश के मुख पर अपना दाहिना हाथ रखकर –
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

ये मंत्र पढ़ें और अगर मंत्र न बोल पायें तो या ध्यान न रहे तो बिना मंत्र के ही गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु और कावेरी, पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए उन नदियों के जल का आह्वाहन उस कलश में करना चाहिए और ऐसा भाव करना चाहिए कि सभी नदियों का जल उस कलश में आ जाये। पवित्र नदियों के साथ ही वरूण देवता का भी आह्वाहन करना चाहिए, ताकि वो उस कलश में अपना स्थान ग्रहण कर लें।

इस प्रकार आह्वाहन आदि के बाद कलश के मुख पर कलावा बांधिये और एक ढक्कन या परई या दियाली या मिट्टी की कटोरी, जो भी आप उसे अपनी भाषा में कहते हों और जो भी आपके पास उपलब्ध हो, उससे कलश को ढक दीजिये। अब ऊपर ढकी गयी उस कटोरी में जौ भरिये। यदि जौ न हो तो चावल भी भर सकते हैं। इसके बाद एक जटा वाला नारियल लेकर उसे लाल कपड़े में लपेटकर, ऊपर कलावे से बांध दें। फिर उस बंधे हुए नारियल को जौ या चावल से भरी हुई कटोरी के ऊपर स्थापित कर दीजिये।

यहां दो बातें विशेष याद दिला दूं- कुछ लोग कलश के ऊपर रखी गयी कटोरी में ही घी का दीपक जला लेते हैं। ऐसा करना उचित नहीं है। कलश का स्थान पूजा के उत्तर-पूर्व कोने में होता है जबकि दीपक का स्थान दक्षिण-पूर्व कोने में होता है। अतः कलश के ऊपर दीपक नहीं जलाना चाहिए।

Navratri

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दूसरी बात ये है कि कुछ लोग कलश के ऊपर रखी कटोरी में चावल भरकर उसके ऊपर शंख स्थापित करते हैं। इसमें कोई परेशानी नहीं है, आप ऐसा कर सकते हैं। बशर्ते कि शंख दक्षिणावर्त होना चाहिए और उसका मुंह ऊपर की ओर रखना चाहिए और चोंच अपनी ओर करके रखनी चाहिए।

इस सारी कार्यवाही में एक चीज़ का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि ये सब करते समय नवार्ण मंत्र अवश्य पढ़ना चाहिए। नवार्ण मंत्र है- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।”
देखिये एक बार फिर से नवार्ण मंत्र के साथ सारी कार्यवाही समझ लीजिए...
सबसे पहले उत्तर-पूर्व कोने की सफाई करें और जल छिड़कते समय कहें- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।”
फिर कोने में मिट्टी या बालू बिछायी और 5 बार मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसके ऊपर जौ बिछाया और मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसके ऊपर फिर मिट्टी या बालू बिछायी और मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसके ऊपर कलश रखा और मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
कलश में जल भरा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसमें सिक्का डाला- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
वरूण देव का आह्वाहन किया- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
कलश के मुख पर कलावा बांधा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
कलश के ऊपर कटोरी रखी- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसमें चावल या जौ भरा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
नारियल पर कपड़ा लपेटा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उसे कलावे से बांधा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
उस नारियल को जौ या चावल से भरी कटोरी पर रखा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे” इस प्रकार सभी चीजें चामुण्डा मंत्र से ही, यानी नवार्ण मंत्र से अभिपूत की जानी है।

ऐसे करें पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना

साथ ही बता दूं आज नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना की जायेगी।  आज के दिन मां शैलपुत्री की उपासना करने से व्यक्ति को धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। आज के दिन इन सब चीज़ों का लाभ उठाने के लिये देवी मां के इस मंत्र से उनकी उपासना करनी चाहिए। मंत्र है- ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।’ आज के दिन आपको अपनी इच्छानुसार संख्या में इस मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। इससे आपको हर तरह के सुख-साधन मिलेंगे।

मंत्र जाप के साथ ही शास्त्रों में बताया गया है कि नवरात्र के पहले दिन देवी के शरीर में लेपन के तौर पर लगाने के लिए चंदन और केश धोने के  लिए त्रिफला चढ़ाना चाहिए । त्रिफला में आंवला, हर्रड़ और बहेड़ा डाला जाता है। इससे देवी मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाये रखती हैं।

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