धर्म डेस्क: नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के छठे अवतार कत्यायनी देवी की पूजा होती है। मां कात्यायनी बहुत जल्दी ही भक्तों से प्रसन्न होकर उनके रोग, दुख, संताप, भय के साथ सभी कष्टों से निजात दिलाती है। इसके साथ ही मां की कृपा होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मां के इस रूप के प्रगट होने की बड़ी ही अद्भुत कथा है। इसके अनुसार देवी के इसी स्वरूप ने महिषासुर का मर्दन किया था। देवीभाग्वत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा गृहस्थों और विवाह के इच्छुक लोगों के लिए बहुत ही फलदायी है।
ऐसे कहलाया मां का छठा रुप कत्यायनी
पुराणों के अनुसार मां दुर्गा ने कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ गया। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। यह दानवों, असुरों और पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी कहलाती हैं।
आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा को ग्रहण कर मां ने दशमी के दिन महिषासुर की वध किया। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए।
ऐसा है मां का स्वरुप
मां कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है। चार भुजा बाली मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। उन्होनें एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल का फूल लेकर सुशोभित है। साथ ही दूसरें दोनों हाथों में वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। मां कत्यायनी का वाहन सिंह हैं। नवरात्र की षष्ठी तिथि के दिन देवी के इसी स्वरूप की पूजा होती है। क्योंकि इसी तिथि में देवी ने जन्म लिया था और महर्षि ने इनकी पूजा की थी।
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