धर्म डेस्क: (पं. हरीश चन्द्र गुणवन्त) शरद ऋतु में प्रारम्भ होने की वजह इन नवरात्रों को शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष 2017 में शारदीय नवरात्र 21 सितम्बर में प्रारम्भ हो रहे हैं 28 सितम्बर को महा दुर्गा अष्टमी, 29 सितम्बर को नवमी और 30 सितम्बर 2017 को विजयादशमी का पर्व मनाया जायेगा। नौ दिनों तक चलने वाले इन नवरात्रों में मां जगदम्बा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है, मां के इन नौ स्वरूपों को इन अलग अलग नौ नामों से जाना जाता है। मां जगदम्बा से प्रार्थना की जाती है कि अपने भक्तों को सुख, सम्पत्ति, सम्पन्नता, सदबुद्धि व सदभावना प्रदान करे। मां जगदम्बा इतनी कृपालु हैं कि वे बहुत थोड़ी सी आराधना, प्रार्थना से सन्तुष्ट होकर अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।
साथ ही आपको ये भी बता दूं कि सर्वप्रथम भगवान श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका पर विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की थी। और तभी से असत्य पर सत्य की जीत एवम अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व विजयादशमी मनाया जाता है।
आपको ये भी बता दूं कि इस वर्ष के शारदीय नवरात्र में मॉं की स्थापना (घट स्थापना, कलश स्थापना) का उपयुक्त समय प्रातः 6 बजकर 18 मिनट से प्रातः 8 बजकर 13 मिनट तक है । इस शुभ मुहूर्त में आप अपने घर में मॉं की स्थापना कर उनकी पूजा आराधना कर सकते हैं। यदि किसी कारण बस उपरोक्त समय में आप मॉं की स्थापना पूजा नहीं कर पाते हैं तो कोई चिन्ता की बात नहीं आप इसके बाद भी मॉं की स्थापना कर सकते हैं।
21 सितम्बर को दोपहर 1 बजकर 30 मिनट से दोपहर बाद 3:00 बजे तक राहुकाल रहेगा ।इस समय में आप पूजा आरम्भ न करें । क्योंकि राहूकाल में कोई भी शुभ कार्य आरम्भ करना वर्जित होता है। राहुकाल का समय छोड़कर शेष समय मॉं की आराधना के लिए उत्तम है।
नवरात्रि में इन नौ देवियों की पूजा होती है। जानइए क्या है इनके नामों का अर्थ..
प्रथम शैलपुत्री : पहाड़ों की पुत्री होता है।
द्वितीय ब्रह्मचारिणी : ब्रह्मचारी।
तृतीय चंद्रघंटा : चांद की तरह चमकने वाली।
चतुर्थ कूष्मांडा : पूरा जगत उनके पैर में है।
पंचम स्कंदमाता : कार्तिक स्वामी की माता।
षष्ठ कात्यायनी : कात्यायन आश्रम में जन्मि।
सप्तम कालरात्रि : काल का नाश करने वली।
अष्टम महागौरी : सफेद रंग वाली मां।
नवम सिद्धिदात्री : सर्व सिद्धि देने वाली।
प्रथम नवरात्र से ब्रत शुरू कर नवमी तक मॉ की कृपा प्राप्ति हेतु उपवास करने चाहिए फिर दशमी को मॉं की पूजा व हवन कर कन्या पूजन. कन्याओं को भोजन कराना चाहिए, एवम ब्राह्मणों को भी भोजन आदि कराकर दान दक्षिणा देनी चाहिए।
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