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नरसिंह जयंती 2018: इस शुभ मुहूर्त में इस पूजा विधि से करें पूजा साथ ही जानें किस मंत्र से हर काम करें सिद्ध

नरसिंह जयंती 2018: नृसिंह चतुर्दशी, हस्त नक्षत्र वैशाख शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि सुबह 07:12 पर ही समाप्त हो चुकी है। अतः फिलहाल चतुर्दशी तिथि चल रही है। वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह चतुर्दशी मनाई जाती है। जानइए पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और बीज मंत्र के बारें में...

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : April 28, 2018 7:04 IST

Narsingh Jayanti 2018

Narsingh Jayanti 2018

मंत्र की जप विधि
इस मंत्र का जाप करने के लिये सबसे पहले नृसिंह यंत्र का निर्माण करना चाहिए। फिर उस यंत्र को पुष्पों के आसन पर मन्दिर में स्थापित करना चाहिए और भगवान नृसिंह का ध्यान करते हुए उसकी विधि-पूर्वक धूप-दीप आदि से पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार पूजा आदि के बाद भगवान नृसिंह के मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र एक बार फिर से दोहरा देता हूं-

“ॐ उग्रवीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखं ।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥“

अगर आप अपने किसी शत्रु का नाश करना चाहते हैं तो मंत्र में प्रयुक्त दो मृत्यु पदों में से पहले पद के स्थान पर शत्रु का नाम लिखकर, स्वयं हरि रूप होकर, तेज धार के नाखून और दांतों से शत्रु को काटते हुए स्वरूप का ध्यान करके इस मंत्र का 108 बार जाप करें। लगभग 46 दिनों तक नित्य इस मंत्र का जाप करने से आप शत्रु का नाश करने में सफल होंगे। मृत्यु पद के स्थान पर शत्रु का नाम किस प्रकार लिखना है, वो भी समझ लीजिये-

“ॐ उग्रवीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखं।

नृसिंहं भीषणं भद्रं (x, y, z, यानी किसी भी शत्रु का नाम), फिर.... मृत्युं नमाम्यहम् ॥“ इस प्रकार मंत्र का जाप करने से आपको अपने कार्य में सफलता जरूर मिलेगी।

वैसे तो यह मंत्र अपने आप में बहुत शक्तिशाली है, लेकिन मंत्र जाप के बाद जो व्यक्ति घी में बनी खीर से हवन करता है, वह काम्य प्रयोगों को सिद्ध करने में सक्षम हो जाता है।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिये साधक को बेल की लकड़ियों से प्रज्वलित अग्नि में होम करना चाहिए। अन्यथा बेल के हजार पत्रों के द्वारा होम करना चाहिए। इससे आपको लक्ष्मी की प्राप्ति अवश्य ही होगी। जबकि आरोग्यता पाने के लिये आज के दिन बेल के फूलों और फलों से होम करना चाहिए।

भगवान नृसिंह का एक और मंत्र भी है, जिसे आप नोट करके रख सकते हैं- “ऊँ नमो नृसिंहाय हिरण्यकश्यपु वक्षस्थल विदारणाय त्रिभुवन व्यापकाय भूत प्रेत पिशाच डाकिनी कुलोन्मूलनाय स्तम्भोद् भवाय समस्त दोषान् हर हर बिसर बिसर पच पच हन हन कम्पय कम्पय मथ मथ ह्रीं ह्रीं ह्रीं फट् फट् ठः ठः एह्येहि रूद्र आज्ञापयति स्वाहा।।“

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