ऐसे रुका ये यज्ञ
जब आस्तिक मुनि को इस यज्ञ के बारें मं पता चला, तो वह उस जगह गए और यज्ञ की स्तुति करने लगे। यह देखकर जनमेजय ने उन्हें वरदान देने के लिए बुलाया। तब आस्तिक मुनि राजा जनमेजय से सर्प यज्ञ बंद करने का निवेदन किया। पहले तो जनमेजय ने इंकार किया लेकिन बाद में ऋषियों द्वारा समझाने पर वे मान गए। इस प्रकार आस्तिक मुनि ने धर्मात्मा सर्पों को भस्म होने से बचा लिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार माना जाता है कि सर्प भय के समय जो भी व्यक्ति आस्तिक मुनि का नाम लेता है, सांप उसे नहीं काटते।