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अनोखी परंपरा जहां दी जाती है रक्तहीन बलि...

इस मंदिर में पूजा 1900 सालों से लगातार होती चली आ रही है। यह मंदिर पूरी तरह से जीवंत है। पौराणिक और धार्मिक प्रधानता वाले इस मंदिर के मूल देवता हजारों वर्ष पूर्व नारायण अथवा विष्णु थे। जानिए इस अनोखे मंदिर के बारें में।

India TV Lifestyle Desk
Updated on: March 31, 2016 11:02 IST
mundeshwari temple
mundeshwari temple

इस मंदिर में शारदीय और चैत्र माह के नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालु दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। वर्ष में दो बार माघ और चैत्र में यहां यज्ञ होता है।

यहां पर बलि की है अनोखी परंपरा

यहां पर बलि देने की अनूठी परंपरा है। यहां पर बलि के रुप में बकरें को मारा नही जाता है बल्कि उसकी पूजा कर छोड़ दिया जाता है। इसके लिए बलि के लिए मां की मूर्ति के समक्ष लाए गए बकरे पर पुजारी मंत्रपूत अक्षत-पुष्प छिड़कते हैं और बकरा बेहोश सा होकर शांत पड़ जाता है। पुनः पुजारी द्वारा अक्षत पुष्प छिड़कते हीं जागृत होकर बकरा डगमगाते कदमों से स्वयं मुख्य द्वार से बाहर चला जाता है। इस प्रकार रक्तहीन बलि संपूर्ण होती है। सचमुच यहां पर माता साक्षात विराजती हैं तभी तो अपनी संतान का वध नहीं चाहती बल्कि उसके सर्वस्व समर्पण से पुलकित होकर चिरजीवन का वरदान देती है।

रंग बदलता शिवलिंग
मुण्डेश्वरी मंदिर के गर्भगृह के मध्य में स्थित एक काले रंग का पत्थर पंचमुखी शिव लिंग भी अत्यंत प्रभावकारी एवं अद्वितीय है। यहां पर मौजूद लोगों के अनुसार यह सुबह, दोपहर एवं शाम को सूर्य की स्थिति परिवर्तन के साथ विभिन्न आभाओं में दिखाई देता है। जो कि अपने अद्भुता का एक नमूना है।

यह मंदिर श्री यन्त्र के स्वरुप में है निर्मित
मां मुण्डेश्वरी का मंदिर पूर्णरुप से श्री यन्त्र पर ही निर्मित है। इसके अष्टकोणीय आधार एवं चतुर्दिक अवस्थित भग्नावशेषों के पुरातात्विक अध्ययन के पश्चात यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है। धार्मिक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से श्री यन्त्र आधारित मंदिर में अष्ट सिद्धियां तथा संपूर्ण देवी देवता विराजमान होते हैं।

 

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