Friday, November 22, 2024
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Mokshada Ekadashi: मोक्षदा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, साथ ही जानें महत्व और कथा

मार्गशीर्ष महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को भारतीय धर्म शास्त्रों में मोक्षदायिनी एकादशी के रुप में माना जाता है। इस बार मोक्षादायिनी एकादशी 18 और 19 दिसंबर को मनाई जा रही है। जानें मोक्षदा एकादशी का महत्व, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: December 18, 2018 18:00 IST
Mokshada Ekadashi- India TV Hindi
Mokshada Ekadashi

मोक्षदा एकादशी शुभ मुहूर्त और पूजा विधि: मार्गशीर्ष महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को भारतीय धर्म शास्त्रों में मोक्षदायिनी एकादशी के रुप में माना जाता है। मोक्षदा एकादशी का धार्मिक महत्व पितरों के मोक्ष दिलाने वाली एकादशी के रुप में भी माना जाता है। इस बार मोक्षादायिनी एकादशी 18 और 19 दिसंबर को मनाई जा रही है। जानें मोक्षदा एकादशी का महत्व, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा।

धर्म ग्रंथों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश दिए थे। जो मोक्ष प्रदान करता है। इस दिन ऐसे करें भगवान कृष्ण की पूजा। इसे बैकुंठ एकादशी के नाम से भी जानते है। (आज का राशिफल: मगंलवार के दिन बन रहा है सब काम बनाने वाला योग, इन राशियों को मिलेगा अचानक धनलाभ )

मोक्षदा एकादशी पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान का मनन करते हुए सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके बाद सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद पूजा स्थल में जाकर भगवान श्री कृष्ण की पूजा विधि-विधान से करें । इसके लिए धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से करने के साथ रात को दीपदान करें। इस दिन रात को सोए नहीं। सारी रात जगकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। इसी साथ भगवान से किसी प्रकार हुआ गलती के लिए क्षमा भी मांगे। (साप्ताहिक राशिफल: सप्ताह ही शुरुआत में ही सूर्य और शनि का संयोग, इन राशियों को पूरे सप्ताह होगा कष्ट ही कष्ट )

अगले दूसरे दिन यानी की 22 दिसंबर, मंगलवार के दिन सुबह पहले की तरह करें। इसके बाद ब्राह्मणों को ससम्मान आमंत्रित करके भोजन कराएं और अपने अनुसार उन्हे भेट और दक्षिणा दे। इसके बाद सभी को प्रसाद देने के बाद खुद भोजन करें।

शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस व्रत का फल हजारों यज्ञों से भी अधिक है।

रात को भोजन करने वाले को उपवास का आधा फल मिलता है, जबकि निर्जल व्रत रखने वाले का माहात्म्य तो देवता भी वर्णन नहीं कर सकते।

मोक्षदा एकादशी व्रत का महत्व
मोक्षदा एकादशी का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन का मोह भंग करने के लिए मोक्ष प्रदायिनी श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। इसलिए इस दिन को गीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है।

श्रीमद्भगवद्गीता में अठारह अध्याय हैं। गीता के ग्यारहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण के द्वारा अर्जुन को विश्वरूप के दर्शन का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में बताया गया है कि अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण को संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त देखा। श्री कृष्ण में ही अर्जुन ने भगवान शिव, ब्रह्मा एवं जीवन मृत्यु के चक्र को भी देखा। इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पद्म पुराण के अनुसार माना गया है कि इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से जाने-अनजाने में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है और पितरों को सद्गति मिलती है। माना जाता है कि इस व्रत की केवल कथा सुनने से ही हजारों यज्ञ का फल मिलता है।

मोक्षदा एकादशी कथा
पुरातन काल में गोकुल नगर में वैखानस नाम के राजा राज्य करते थे। एक रात उन्होंने देखा उनके पिता नरक की यातनाएं झेल रहे हैं। उन्हें अपने पिता को दर्दनाक दशा में देख कर बड़ा दुख हुआ। सुबह होते ही उन्होंने राज्य के विद्धान पंडितों को बुलाया और अपने पिता की मुक्ति का मार्ग पूछा। उनमें से एक पंडित ने कहा आपकी समस्या का निवारण भूत और भविष्य के ज्ञाता पर्वत नाम के पंहुचे हुए महात्मा ही कर सकते हैं। अत: आप उनकी शरण में जाएं।

राजा पर्वत महात्मा के आश्रम में गए और उनसे अपने पिता की मुक्ति का मार्ग पूछा, "महात्मा ने उन्हें बताया की उनके पिता ने अपने पूर्व जन्म में एक पाप किया था। जिस का पाप वह नर्क में भोग रहे हैं।"

राजा न कहा," कृपया उनकी मुक्ति का मार्ग बताएं।"

महात्मा बोले," मार्गशीर्ष मसके शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है। उस एकादशी का आप उपवास करें। एकादशी के पुण्य के प्रभाव से ही आपके पिता को मुक्ति मिलेगी।" राजा ने महात्मा के कहे अनुसार व्रत किया उस पुण्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और वह स्वर्ग में जाते हुए अपने पुत्र से बोले, "हे पुत्र! तुम्हारा कल्याण हों, यह कहकर वे स्वर्ग चले गए।"

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