धर्म डेस्क: वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से सुख-समृद्धि बढ़ती है। वहीं व्रत-उपवास रखकर मोह-माया के बंधन से मुक्त होने के लिए यह एकादशी बहुत लाभदायी है।
स्कंद पुराण के अनुसार मोहिनी एकादशी के दिन समुद्र मंथन में निकले अमृत का बंटवारा हुआ था। स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में शिप्रा को अमृतदायिनी, पुण्यदायिनी कहा गया। अत: मोहिनी एकादशी पर शिप्रा में अमृत महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
विष्णु पुराण के अनुसार मोहिनी एकादशी का विधिवत व्रत करने से मनुष्य मोह-माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। साथ ही व्रती के समस्त पापों का नाश हो जाता है।
अवंतिका खंड के अनुसार मोहिनी रूपधारी भगवान विष्णु ने अवंतिका नगरी में अमृत वितरण किया था। देवासुर संग्राम के दौरान मोहिनी रूप रखकर राक्षकों को चकमा दिया और देवताओं को अमृत पान करवाया। यह दिन देवासुर संग्राम का समापन दिन भी माना जाता है।मोहिनी एकादशी व्रत में सावधानी का ध्यान रखना जरूरी है।
एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित हैं।
मोहिनी एकादशी के अवसर पर पूजा-पाठ, सत्संग, एकादशी महात्म्य की कथा, प्रवचन सुनना लाभकारी है।
भगवान विष्णु को चंदन और जौ चढ़ाएं क्योंकि यह व्रत परम सात्विकता और आचरण की शुद्धि का व्रत होता है। जीवन काल में धर्मानुकूल आचरण करते हुए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग ढूंढने में सहायता करता है मोहिनी एकादशी पर पूजन। इस दिन व्रत, उपवास करने से खुख, शांति और संपन्नता प्राप्त होती है।
व्रत अनुष्ठान व दान से सफलता प्राप्त होती है।
पूरे दिन कु्छ न खाएं और संध्या आरती के बाद भोग लगाकर ही खाएं।
इस दिन भगवान विष्णु मंत्र का पूरे दिन जाप करते रहें।