महावीर जयंती का पर्व महावीर स्वामी के जन्म दिन चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है। यह जैनों का सबसे प्रमुख पर्व है। भगवान महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे जिनका जीवन ही उनका संदेश है। उनके सत्य, अहिंसा, के उपदेश एक खुली किताब की भांति है। इस बार महावीर जयंती 17 अप्रैल को मनाई जाएगी।
महावीर का हुआ था एक राज परिवार में जन्म
महावीर का जन्म एक राजपरिवार में हुआ था। उनके परिवार में ऐश्वर्य, धन-संपदा की कोई कमी नहीं थी, किंतु युवावस्था में कदम रखते ही उन्होंने संसार की माया-मोह, सुख-ऐश्वर्य और राज्य को छोड़कर, सारी सुविधाओं का त्याग कर वे नंगे पैर पैदल यात्रा करते रहे।
एक राजा जिसने अपने राज्य का त्याग कर दिया। राजसी व्यक्तित्व होते हुए भी सांसारिक सुख का त्याग कर देना और लोगों को सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग दिखाना। आखिर यह ढाई हजार वर्ष पूर्व किसने प्रेरित किया था। इन्हें भगवान महावीर का नाम दिया। कहा जाता है कि क्षमा वीरस्य भूषणम्। भगवान महावीर में क्षमा करने का एक अद्भुत गुण था। वे सच्चे महावीर थे। भगवान श्री महावीर तो केवल 30 वर्ष की युवा अवस्था में ही राजपरिवार को छोड़कर ज्ञान प्राप्ति के लिए निकल गए। केवल ज्ञान की खोज में निकलने के बाद उन्हें सत्य, अहिंसा, श्रद्धा, विश्वास प्राप्त हुआ।
इस कारण किया था घर का त्याग
भगवान महावीर उस युग में पैदा हुए जब वैदिक क्रियाकांडों का बोलबाला था। धर्म के नाम पर अनेकानेक धारणाएं हमारी संस्कृति में रची बसीं थीं, जिनके कारण लोग स्वावलंबी न होकर ईश्वर के भरोसे बैठे रहते थे और शूद्र, उच्चवर्ग के अत्याचारों से कराह रहे थे। तीर्थंकर महावीर ने प्रतिकूल वातावरण की कोई परवाह न कर साहस के साथ अपने सिद्धांतों को जनमानस के बीच रखा। उन्होंने ढोंग, पाखंड, अत्याचार, अनाचारत व हिंसा के नकारते हुए दृढ़तापूर्वक अहिंसक धर्म का प्रचार किया।
महावीर ने समाज को अपरिग्रह, अनेकांत और रहस्यवाद का मौलिक दर्शन समाज को दिया। कर्मवाद की एकदम मौखिक और वैज्ञानिक अवधारणा महावीर ने समाज को दी। उस समय भोग-विलास एवं कृत्रिमता का जीवन ही प्रमुख था, मदिरापान, पशुहिंसा आदि जीवन के सामान्य कार्य थे। बलिप्रथा ने धर्म के रूप को विकृत कर दिया था।
ऐसे बनाया भारत को चंदन
भगवान महावीर ने वर्षों से चली आ रही सामाजिक विसंगतियों को दूर कर भारत की मिट्टी को चंदन बनाया। महावीर के व्यवहार के बारें में कहा जाता है कि जो भी प्राप्त करना है, अपने पराक्रम से प्राप्त करो। किसी से मांग कर प्रार्थना करके, हाथ जोड़कर प्रसाद के रूप में धर्म प्राप्त नहीं किया जा सकता।
धर्म मांगने से नहीं, स्वयं धारण करने से मिलता है। जीतने से मिलता है। जीतने के लिए संघर्ष आवश्यक है। समर्पण जरूरी है। महावीर स्वामी कोई प्रचारक, उपदेशक, विचारक नहीं थे बल्कि उन्होंने अपने आचरण से अपने विचारों को कार्यरूप में परिणित किया था।
महावीर का था ये मार्ग
महावीर का मार्ग भक्ति का नहीं, ज्ञान और कर्म का मार्ग है। आत्मकल्याण के लिए हमें आत्मजागरणपूर्वक अपनी चैतन्यता को जाग्रत करना चाहिए। अपनी हीनता, असहायता और दुर्बलता के बोध को विसर्जन कर देना चाहिए।
ये थे महावीर स्वामी ते सूत्र वाक्य
स्वामी जी के सूत्र वाक्य है आत्म ज्ञानी बनो, उनके इस उद्घोषक का अर्थ है। हमें स्वयं के भीतर झांकना होगा। अपनी आंतरिक शक्तियों का जागरण ही। आत्मबोध की ओर अग्रसर करता है।
जानिए महावीर से सफलताओं की ओर जाने के लिए अहम बातें
तुम बाहरी शत्रुओं से लड़ो, क्रोध, मान, माया, लोभ जैसी दुष्टप्रवृत्तियों को जीतो, मनवचन और कार्य से व्यवहार करो, तो तुम महान बनोगे और तुम्हारा भी कोई शत्रु नहीं रहेगा।
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