हिंदू कैलेंडर के अनुसार 11 मार्च 2021 को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी। कहा जाता है हिंदू धर्म के सभी देवी देवताओं में सबसे आसान भगवान शिव को प्रसन्न करना होता है। ऐसे में प्रत्येक वर्ष में 12 मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है और साल में एक बार महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव की प्रसन्नता हासिल करना और भी ज्यादा आसान होता है। जो कोई भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा भक्ति के साथ महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना करता है और कुछ खास उपाय करता है उससे भगवान शंकर अवश्य प्रसन्न होते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस वर्ष मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि पर दुर्लभ योग भी बन रहा है। जानें ज्योतिषाचार्य अनिल कुमार ठक्कर से महाशिवरात्रि पूजा का शुभ मुहूर्त, व्रत पूजा विधि और शिवरात्रि व्रत की कथा।
महाशिवरात्रि पर 101 साल बाद बन रहा है दुर्लभ योग
इस वर्ष शिवरात्रि के दिन 9 बजकर 22 मिनट तक ‘शिवयोग’ जिसे बेहद ही कल्याणकारी योग कहा जाता है बन रहा है और इसके बाद इस दिन ‘सिद्धि योग’शुरू हो जाएगा। मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि सिद्धि योग बेहद ही शुभ योग होता है और इस योग में किया गया कोई भी काम सफल होता है। ऐसे में आपको भी इस योग में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने की सलाह दी जाती है। इस दौरान की गई पूजा सफल होती है और हर मनोकामना भी पूरी होती है।
महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्त 2021
महाशिवरात्रि 11 मार्च 2021
निशीथ काल पूजा मुहूर्त : 11 मार्च देर रात 12 बजकर 06 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक
अवधि- 48 मिनट
महाशिवरात्रि पारण मुहूर्त : 12 मार्च सुबह 6 बजकर 36 मिनट 6 सेकेंड से दोपहर 3 बजकर 4 मिनट 32 सेकंड तक
शिवरात्रि व्रत की पूजा-विधि
1. मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए। अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए।
2. शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।
3. शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालांकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा
शिवरात्रि को लेकर बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं। विवरण मिलता है कि भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार शिवरात्रि व्रत कथा
गरुड़ पुराण में इस दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा कही गई है, जिसके अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह थककर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहां बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ करने के लिए उसने उन पर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बूंदे शिवलिंग पर भी जा गिरीं। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया जिसे उठाने के लिए वह शिवलिंग के सामने नीचे को झुका।
इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया। जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।
इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया। जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।