पूजा विधि
कलश स्थापना के बाद कलश पर एक कच्चा नारियल लाल कपड़े में लपेट कर उस पर रख दें| माता महालक्ष्मी की स्थापना दक्षिण-पूर्व कोने में कीजिए। इसके लिए एक लकड़ी की चौकी लेकर उस पर श्वेत रेशमी कपड़ा बिछाएं और उस पर महालक्ष्मी की तस्वीर रख दें। यदि आप तस्वीर की जगह मूर्ति का प्रयोग कर रहें हो तो पाटे को आप लाल वस्त्र से सजाएं।
- कलश के बगल में एक अखण्ड ज्योति स्थापित करें, जो पूरे सोलह दिनों तक जलती रहे।
- सोलह दिनों तक सुबह तथा शाम को महालक्षमी की पूजा करें। मेवा-मिठाई या सफेद दूध की बर्फी का नित्य भोग लगाएं।
- एक लाल रेशमी धागा या कलावे का टुकड़ा लीजिये और उसमें 16 गांठे लगाएं और कल सुबह पूजा के समय घर के हर सदस्य को वह 16 गांठ वाला लाल धागा बांधे।
- पूजा के पश्चात इसे उतारकर लक्ष्मी जी के चरणों में रख दें। अब इसका प्रयोग पुनः अंतिम दिन संध्या पूजा के समय ही होगा |
- अब मैं इस मंत्र का जाप करें।
- 'ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः' अगर आपको यह मंत्र बोलने में दिक्कत आये तो आप केवल "श्रीं ह्रीं श्रीं' मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। क्योंकि लक्ष्मी का एकाक्षरी मंत्र तो "श्रीं" ही है।
- महालक्ष्मी के जप के लिये स्फटिक की माला को सर्वोत्तम कहा गया है। कमगट्टे की माला को भी उत्तम बताया गया है। ये दोनों न होने पर रूद्राक्ष की माला पर भी जप कर सकते हैं। इस मंत्र का पुरस्चरण एक लाख जप हैं। पूजा समापन के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
ऐसे करें हवन
हवन के लिए चंदन, आम अथवा बेल की समिधा लेनी चाहिए। समिधा यानि लकड़ी। जप पूरा होने पर मधु, घी और शक्कर से युक्त बेल के फलों की गिरी से होम करना चाहिए। जो लोग इस विधि से देवी की उपासना करते हैं, देवी अपना घर भूलकर उनके घर में निवास करती है।