आश्विन कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि और शनिवार का दिन है। सप्तमी तिथि 20 सितम्बर की शाम 08:13 मिनट से शुरू हुई थी और 21 सितम्बर की शाम 08:21 मिनट तक रहेगी। भाद्रपद पद की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से महालक्ष्मी का सोरहिया व्रत का समापन हो रहा है। इस शनिवार को रखकर मां लक्ष्मी की कृपा सकते है। जानें महालक्ष्मी व्रत के समापन की सामग्री और पूजा विधि।
महालक्ष्मी व्रत पूजा सामग्री
दो सूप, 16 मिट्टी के दिये, प्रसाद के लिये सफेद बर्फी, फूल माला, तारों को अर्घ्य देने के लिये यथेष्ट पात्र, 16 गांठ वाला लाल धागा और 16 चीजें, हर चीज सोलह की गिनती में होनी चाहिए; जैसे 16 लौंग, 16 इलायची या 16 सुहाग के सामान आदि।
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महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार पहले दिन महालक्ष्मी की पूजा सुबह के समय हुई थी, जबकि कल व्रत के आखिरी दिन शाम के समय देवी मां की पूजा होगी। कल समापन पूजा विधि के दौरान सबसे पहले अपने हाथ में वही 16 गांठों वाला लाल धागा बांध लें, जो आपने व्रत के पहले दिन बांधा था। अब माता महालक्ष्मी के आगे 16 देसी घी के दीपक जलायें और धूपदीप से देवी मां का पूजन करें। फिर एक सूप में सोलह चीजें सोलह-सोलह की संख्या में रखकर उसे दूसरे सूप से ढंक दें और उसे माता के निमित्त दान करने का संकल्प करें।
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संकल्प के लिये मंत्र पढ़ें - क्षीरोदार्णव सम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्र सहोदरा
हे क्षीर सागर से उत्पन्न चन्द्रमा की सगी बहन माता महालक्ष्मी मैं यह सब कुछ आपके निमित्त दान कर रहा हूं। इस प्रकार संकल्प लेकर उस सूप को वहीं रखा रहने दें। अब दीपक में ज्योति जलाकर माता महालक्ष्मी के मंत्र का जाप कीजिये। मंत्र इस प्रकार है - ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
आप पूजा से पहले ही इस मंत्र का अपनी इच्छानुसार संख्या में संकल्प लेकर रखिये। फिर जैसा आपने संकल्प किया हो, उसके हिसाब से मन्त्र जाप कीजिये। जप के बाद माता महालक्ष्मी की आरती कीजिये और उन्हें सफेद मिठाई का भोग लगाइये। इस प्रकार पूजा आदि के बाद तारों को जल से अर्घ्य दीजिये और आरती कीजिये। बाद अपने जीवनसाथी का हाथ पकड़कर तीन बार उत्तर की ओर मुंह करके पुकारिये - हे माता महालक्ष्मी मेरे घर आ जाओ, हे माता महालक्ष्मी मेरे घर आ जाओ, हे माता महालक्ष्मी मेरे घर आ जाओ।
इसके बाद जो व्रती है, वो अपने लिये और माता महालक्ष्मी के लिये अलग-अलग थाली में भोजन निकालिये। अगर आप विवाहित हैं और आपने जोड़े में ये व्रत किया है, तो देवी मां और अपने साथ- साथ अपने जीवनसाथी के लिये भी थाली में भोजन निकालिये। साथ ही हो सके तो माता महालक्ष्मी के लिये चांदी की थाली में भोजन निकालकर रखिये। भोजन करने के बाद अपनी थालियां उठा लें, लेकिन माता की थाली को, किसी दूसरी थाली से ढक्कर वहीं पर रखा छोड़ दें। अगले दिन सुबह माता के लिये निकाली थाली का भोजन किसी गाय को खिला दें और सूप में रखा हुआ दान का सामान किसी लक्ष्मी मंदिर में दान कर दें। इसके अलावा 16 गांठों वाले धागे को अपनी तिजोरी में संभाल कर रख लें। इससे आपके घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होगी, हर प्रकार से आपके घर-परिवार की समृद्धि ही समृद्धि होगी।