कनाडा के ओटावा से वापस लगाई गई देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति को उत्तर प्रदेश में वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में पुनर्स्थापना किया जा रहा है। ये मूर्ति करीब 108 साल पहले चोरी हो गई थी। पिछले 100 साल से इसे कनाडा के एक म्यूज़ियम में रखा हुआ था पीएम मोदी की कोशिशों के बाद इसे वापस लाया गया।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में रानी भवानी स्थित उत्तरी गेट के बगल में प्राण प्रतिष्ठा कर मूर्ति स्थापित की जाएगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। जानिए मां अन्नपूर्णा के बारे में।
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कौन है माता अन्नपूर्णा?
अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं। इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है, जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा स्वरूप से संसार का भरण-पोषण होता है। अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- 'धान्य' (अन्न) की अधिष्ठात्री।
जानिए क्यों कहा जाता है काशी को अन्नपूर्णा की नगरी?
मां अन्नपूर्णा मां पार्वती के रूप में प्रभु शिव से शादी की थीं। तब शादी के बाद शिव ने कैलाश पर्वत पर रहने का फैसला किया था लेकिन हिमालय की पुत्री पार्वती को कैलाश यानी कि अपने मायके में रहना पसंद नहीं आया इसलिए उन्होंने काशी जोभोलेनाथ की नगरी कही जाती है, वहां रहने की इच्छा जाहिर की, जिसके बाद शिव उन्हें यहां लेकर आ गए। इसलिए काशी ही मां अन्नपूर्णा की नगरी कही जाती है। इसलिए कहा जाता है भोलेनाथ की नगरी में कोई भी भूखा नहीं रहता है।
मूर्ति में मां अन्नपूर्णा का ऐसा है स्वरूप
मां अन्नपूर्णाजी की मूर्ति 18वीं सदी की मूर्ति मानी जा रही हैं, जिसे चुनार के बलुआ पत्थर से बनाया गया है। माता के एक हाथ में कटोरा दूसरे हाथ में चम्मच है।
मां पार्वती ने रखा मां अन्नपूर्णा का रूप
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पृथ्वी अचानक से बंजर हो गई। हर जगह अन्न-जल का अकाल पड़ गया। पृथ्वी पर सामने जीवन संकट आ गया। तब पृथ्वी पर लोग ब्रह्मा और भगवान विष्णु की आराधना करने लगे। ऋषियों ने ब्रह्मलोक और बैकुंठलोक जाकर इस समस्या हल निकालने के लिए ब्रह्माजी और विष्णुजी से कहा। इसके बाद ब्रह्मा और विष्णु सभी ऋषियों के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंचे। सभी ने भोलेनाथ से पृथ्वी पर व्याप्त संकट को दूर करने की प्रार्थना की। तब शिवजी ने सभी को अतिशीघ्र समस्या के निवारण का आश्वासन दिया। इसके बाद भोलेनाथ माता पार्वती के साथ पृथ्वी लोक का भ्रमण करने निकले। वहां की स्थिति देखकर बाद माता पार्वती ने देवी अन्नपूर्णा का रूप और भगवान शिव ने एक भिक्षु का रूप ग्रहण किया। इसके बाद भगवान शिव ने भिक्षा लेकर पृथ्वी वासियों में उसे वितरित कर दिया। मान्यता है कि इसके बाद पृथ्वी पर व्याप्त अन्न और जल की कमी दूर हो गई और सभी प्राणी मां अन्नपूर्णा की जय-जयकार करने लगे।