नई दिल्ली: भारत के महान तबला वादक लच्छू महाराज का 74वां बर्थडे है और इसलिए google ने लच्छू महाराज का doodle बनाते हुए श्रद्धांजली दी है। लच्छू महाराज नाम सिर्फ देश में ही नहीं विदेशों में विख्यात है। सिर्फ इतना ही नहीं लच्छू महाराज हिंदी सिनेमा में अपना योगदान दिया है। अपने समय की सुपरहिट फिल्म मुगल-ए-आजम और पाकीजा में भी उन्होंने काम किया था। इनकी जिंदगी आम बच्चों की तरह नहीं रही बल्कि काफी जिंदगी उठापटक चलती रही। वह लखनऊ में शानदार कथक घाटियों के परिवार से संबंध रखते थे।
लच्छू महाराज का जन्म 16 अक्टूबर 1944 को वाराणसी में हुआ था। वो वाराणसी में ही पले बढ़े और बनारस घराने में ही तबला वादन की शिक्षा ग्रहण की। जब वो सिर्फ 8 साल के थे तो उन्होंने पहली परफॉर्मेंस मुंबई में दी थी। उनका नाम लक्ष्मी नारायण सिंह है, लेकिन उन्हें लच्छू महाराज नाम से जाना जाता है। इमरजेंसी के दौरान महाराज ने जेल के अंदर विरोध के लिए तबला बजाया था और पद्मश्री सहित कई अवॉर्ड्स को लेने से मना कर दिया था।
तबला वादक के रूप में फेमस होने की वजह से उनका नाम लच्छू महाराज पड़ा। वो पूर्वी राग के अलावा 4 तबला घरानों की तबला शैली में भी निपुण थे। देश ही नहीं दुनिया के कई बड़े मंच पर उन्होंने तबला वादन से लोगों का दिल जीता। लच्छू महाराज ने कभी किसी की फरमाइश पर तबला नहीं बजाया।
वो अपने मन से तबला वादन करते थे। पंडित लच्छू महाराज का सहयोग भारतीय सिनेमा में भी रहा है। उन्होंने कई प्रसिद्ध फिल्मों के लिए कोरियोग्राफी भी की है। 'महल (1949)', 'मुगल-ए-आजम (1960)', 'छोटी छोटी बातें (1965)' और 'पाकीजा (1972)' जैसी फिल्मों में वह जुड़े।
1957 में लच्छू महाराज को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मान दिया गया। पद्मश्री अवॉर्ड उन्होंने यह कह कर लेने से मना कर दिया था कि मेरे लिए दर्शकों की तालियां ही सम्मान है। लंबे समय तक बीमार रहने के बाद 27 जुलाई 2016 को वाराणसी में लच्छू महाराज का निधन हो गया। उस वक्त उनकी आयू 72 थी।
आखिरी समय में उन्होंने कहा था- 'कल देखना गुरु, संगीत से एक आदमी नहीं आएगा कि लच्छू मर गया।' लच्छू महाराज के प्रदर्शन को देखकर महान तबला वादक अहमद जान थिरकवा मंत्रमुग्ध हो गए थे। उन्होंने कहा था- 'काश लच्छू मेरा बेटा होता।'