इस मंदिर की मान्यता
इस मंदिर को लेकर दूसरी मान्यता है जो कि मंदिर परिसर के लगी हुई है। इसके अनुसार मां कुष्मांडा की पिंडी की प्राचीनता की गणना करना मुश्किल है। लेकिन पहले घाटमपुर क्षेत्र कभी घनघोर जंगल था। उस दौरान एक कुढाहा नाम का ग्वाला गाय चराने आता था।
उसकी एक गाय चरते चरते इसी स्थान में आकर पिंडी के पास पूरा दूध गिरा देती थी। जब कुढाहा शाम को घर जाता था तो उसकी गाय दूध नहीं देती थी। एक दिन कुढाहा ने गाय का पीछा किया तो उसने सारा माजरा देखा। यह देख उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।
वह उस स्थान पर गया और वहां की सफाई की। तो मां कुष्मांड़ा की मूर्ति दिखाई दी। काफी खोदने के बाद मूर्ति का अंत न मिला तो उसने उसी स्थान पर चबूतरा बनवा दिया। और लोग उस जगह को कुड़हा देवी नाम से कहने लगे। पिंडी से निकलने वाले पानी को लोग माता का प्रसाद मानकर पीने लगे। एक दिन किसी के सपने में मां ने आकर कहा कि मै कुष्मांडा हूं। जिसके कारण उनका नाम कुड़हा और कुष्मांडा दोनो नाम से जाना जाने लगा।
अगली स्लाइड में पढ़े और