धर्म डेस्क: कुंभ (Kumbh) शुरु होने के कुछ घंटे बचे है। जिसके बाद प्रयागराज में पहला शाही स्नान शुरु हो जाएगा। जिसमें लाखों साधु-संत आएंगे।यह कुंभ 15 जनवरी से शुरु होकर 4 मार्च तक चलेगा।
यहां पर आपको हर कोई धर्म और अध्यात्म के रंगो में रंगा होगा। लेकिन इसमें अपनी एक पहचान है। वो है यहां आने वाले अखाड़ो के साधु-संत। जो पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर केंद्रित कर लेते है। मुख्य रुप से 13 अखाड़े को ही मान्यता प्राप्त हैं। इनमें से 7 अखाड़े शैव, 3 अखाड़े वैष्णव और 3 उदासीन (सिक्ख) अखाड़े हैं।
वैसे अगर इन्हें देखा जाएं तो यह एक जैसे लगते है, लेकिन इनकी परंपरा, रिवाज, पूजा विधि सभी अलग है। जानिए इन अखाड़ों के बारें में कुछ खास बातें।
जूना अखाड़ा (शैव)
जूना अखाड़ा पहले भैरव अखाड़े के रूप में जाना जाता था, क्योंकि उस समय इनके इष्टदेव भैरव थे जो कि शिव का ही एक रूप हैं। वर्तमान में इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान दत्तात्रेय हैं, जो कि रुद्रावतार हैं। इस अखाड़े के अंतर्गत आवाहन, अलखिया व ब्रह्मचारी भी हैं। इस अखाड़े की विशेषता है कि इस अखाड़े में अवधूतनियां भी शामिल हैं और इनका भी एक संगठन है।
अटल अखाड़ा (शैव)
इस अखाड़े के इष्टदेव गणेश जी है। इनके शस्त्र भालों को सूर्य प्रकाश के नाम से जाना जाता है। यह अखाड़ा अपने आप पर ही अलग है। इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षा ले सकते है। अन्य कोई इस अखाड़े में नहीं आ सकता है। मान्यता है कि इस अखाड़े की स्थापना सन् 647 में हुई थी। इसका केंद्र काशी है।
अवाहन अखाड़ा (शैव)
इस अखाड़े में महिला साध्वी को कोई दीक्षा या परंपरा नहीं कराई जाती है, बल्कि अन्य अखाड़ों में यह परंपरा है। यग जूना अखाड़े से सम्मिलित है। इस अंखाड़े के इष्टदेव दत्तात्रेय और गणेश जी है।
निरंजनी अखाड़ा (शैव)
यह अखाड़ा सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा है यानी कि इस अखाड़े में सबसे ज्यादा साधु उच्च शिक्षित है। इस अखाड़ा में करीब 50 महामंडलेश्र्चर है। इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान कार्तिकेय हैं, जो देवताओं के सेनापति हैं। निरंजनी अखाड़े के साधु शैव हैं व जटा रखते हैं।
अग्नि अखाड़ा (शैव)
इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते है। कोई अन्य नहीं ले सकते हैं। इस अखाड़े के साधु नर्मदा-खण्डी, उत्तरा-खण्डी व नैस्टिक ब्रह्मचारी में विभाजित है।
महानिर्वाणी अखाड़ा (शैव)
यह एक मात्र अखाड़ा है जो कि भगवान शिव की पूजा सदियों से करते चले आ रहे है। यह अखाड़ा है जिसके जिम्मे महाकलेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा है। इस अखाड़े के अलावा कोई और पूजा नहीं कर सकता है।
आनंद अखाड़ा (शैव)
यह शैव अखाड़ा है जिसे आज तक एक भी महामंडलेश्वर नहीं बनाए गए है। इस अखाड़े के आचार्य का ही पद ही प्रमुख होता है। इस अखाड़े के इष्टदेव सूर्य हैं।
दिंगबर अणि अखाड़ा (वैष्णव)
इस अखाड़े को वैष्णव संप्रदाय में राजा कहा जाता है। इस अखाड़े में सबसे ज्यादा खालसा यानी कि 431 है। यह अखाड़ा लगभग 260 साल पुराना है। सन 1905 में यहां के महंत अपनी परंपरा में11वें थे।
निर्मोही अणि अखाड़ा (वैष्णव)
वैष्णव संप्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में से इसी से सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल है। जिनकी संख्या 9 है। इस अखाड़ा की स्थापना 18वीं सदी के आरंभ में गोविंददास नाम के संत ने की थी।
निर्वाणी अणि अखाड़ा (वैष्णव)
इस अखाड़े में कुश्ती प्रमुख होती है यानि की इनके जीवन का एक हिस्सा होता है। इसी कारण इस अखाड़े के कई संत प्रोफेशनल पहलवान रह चुके है। इसकी स्थापना अभयरामदासजी नाम के संत ने की थी। आरंभ से ही यह अयोध्या का सबसे शक्तिशाली अखाड़ा रहा है। हनुमानगढ़ी पर इसी अखाड़े का अधिकार है। इस अखाड़े के साधुओं के चार विभाग हैं- हरद्वारी, वसंतिया, उज्जैनिया व सागरिया।
बड़ा उदासीन अखाड़ा (सिक्ख)
इस अखाड़े का सिर्फ एक काम होता है। वह है सेवा करना। इस अखाड़े में केवल 4 मंहत होते है। जो कभी कामों से निवृत्त नहीं होते है। जो कि इस क्रम में है 1. अलमस्तजी का पंक्ति का, 2. गोविंद साहबजी का पंक्ति का, 3. बालूहसनाजी की पंक्ति का, 4. भगत भगवानजी की परंपरा का।
नया उदासीन अखाड़ा (सिक्ख)
ये अखाड़ा उन लोगों के लिए है जिनकी दाढी-मूंछे न निकली हो। जिनकी उम्र 8 से 12 साल के बीच है। तभी उन्हे नागा बनाया जाता है। इस अखाड़े का पंजीयन 6 जून, 1913 को करवाया गया।
निर्मल अखाड़ा (सिक्ख)
इस अखाड़ा में औरों अखाड़ों की तरह धूम्रपान की इजाजत नहीं है। यहां पर धूम्रपान बिल्कुल वर्जित है। इस बारें में अखाड़े के सभी केंद्रों के गेटो पर यह लिखा हुआ है। ये सफेद कपड़े पहनते हैं। इसके ध्वज का रंग पीला या बसंती होता है और ऊन या रुद्राक्ष की माला हाथ में रखते हैं।
किन्नर अखाड़ा
अभी तक कुंभ में 13 अखाड़ों की पेशवाई होती थी, लेकिन इस बार कुंभ में किन्नर अखाड़ा भी शामिल हो चुका है। इस अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी हैं।
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