चौथा चरण
इस चरण को चौरासी धुनी कहते है। इसमें साधु को पूरे 84 उपले चारों और घेरा बनाकर रकना होता है और इन्हे जलाकर इसके अंदर बैठकर तप करते है। इस घेर को बनाने के लिए साधु को किसी साथी की मदद लेनी पडती है।
पांचवां चरण
इस चरण को कोट धुनी कहा जाता है। इस चरण में साधु को अपने बिल्कुल आस-पास ही घेरा बनाना पडता है और इसकी तपन और गर्मी के बीच साधना करना होता है।
छठा या अंतिम चरण
अंतिम या छठा चरण सबसे कठिन तप होता है जिसमें साधु को अधिक गर्मी सहनी होती है। इस चरण को कोटखोपड़ धुनी कहा जाता है। इस धुनी के लिए साधु को अपने सिर पर मिट्टी के पात्र में जलते हुए कंडे रखकर तप करना होता है।
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